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________________ ( ३१ ) ऊपर लिखे तीन अवतरणों में से पहले में नोत्पत्ति का क्रम बता कर अन्त में प्राण का आधार अन्न बताया है, और अन्न का आधार भूमि | द्वितीय अवतरण में काबन्धि नामक अनूचान को उसकी माँ ने अपने निवास को छोड़ कर उदीच्य देशों में चलने की प्रेरणा की और कुरु, पाचाल, अङ्ग, मगध, काशी, कोशल, शाल्व, मत्स्य शिवि, उशीनर, आदि भारत के उत्तरीय देशों में सभी लोग अन्न भोजी हैं, इसलिये हम वहां चले जायें। काबन्धि के इस वृत्तान्त से यह सिद्ध होता है, कि गोपथ ब्राह्मण के निर्माणकाल में उत्तर भारत की प्रजा केवलं अन्न भोजी थी। वहां पर मांस मच्छी खाने वाला कोई नहीं था । गोपथब्राह्मण के तृतीय अवतरण में पुत्र कामा अदिति के यज्ञार्थ श्रोदन पकाने तथा यज्ञशेष पुरोडाश खाने से आदित्यों का जन्म होने का कथन है । इसमें भी गोपथब्राह्मण के समय में अन्न ही से देवताओं का यजन किया जाता था, पशुबलि की प्रथा नहीं थी । "अन्नं वै सर्वेषां मनुमन्त्रयते" तेनैवै तच्छमयाञ्चकार प्राशित्र उ० भा० १ प्रपा० पृ० ७८ भूतानामात्मा “याज्यया यजति, अन्नं वै याज्या, अन्नाद्यमेवास्य तत्कल्पयति मूलं वा एतद् यज्ञस्य यद्धायाश्च याज्याश्व” ॥ २२ ॥ उ० भाग० प्रपा पू० ११५
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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