SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 510
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . (४६० ) भोजन करने वाला होता है । वह रात्रि में नहीं चलने वाला होता है । विकाल भोजन से विरत होता है । नृत्य, गीत, धादित्र और अश्लील खेलों से दूर रहता है । माला, सुगन्धि, चन्दनादि विलेपन धारण, मण्डन और विभूषण से निवृत्त होता है। उच्चासन पर बैठने तथा शय्या पर सोने से निवृत्त होता है । सोना, चांदी को ग्रहण करने से दूर रहता है। कच्चा धनियां ग्रहण करने से प्रतिविरत होता है। कच्चा मांस ग्रहण करने से निवृत्त होता है। हाथी की छोटी बच्ची को लेने से दूर रहता है। दासी दास के स्वीकार से दूर रहता हैं । बकरे मेंढे को ग्रहण करने से निवृत्त होता है । मुर्गा तथा सूअर को ग्रहण करने से दूर रहता है। हाथी, बैल, घोड़ा, घोड़ी के ग्रहण से प्रतिबिरत होता है। क्षेत्र वास्तु के ग्रहण से प्रतिविरत होता है। दौत्यार्थ प्रेषणगमन से प्रतिविरत होता है। लेन देन के व्यापार से प्रतिविरत होता है । कूट तूला ( तराजू अथवा तोलने के बांट.) कूटकांश्य (द्रव पदार्थ भर कर देने का नाप) और कूटमान (गज आदि नापने का उपकरण) को रखने से प्रतिविरत होता है। उत्कोटन आत्मोत्सर्ग, वञ्चना, निकृति-कपट, साचियोग से प्रतिविरत होता है। 'छेदन. वध, बन्धन, विपमरामर्श, आरोप, सहसाकार से प्रतिबिरत होता है। बौद्ध भिक्षु का परिग्रह बौद्ध भिक्षु आज कल किस ढंग से रहते हैं, उनके पास क्या क्या उपकरण रहते हैं यह तो ज्ञात नहीं है परन्तु भिक्षुओं के प्राचीन वर्णन से तो यही पाया जाता है कि वे बहुत ही अल्पपरिग्रही रहते होंगे।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy