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________________ । ४५६ ) . निधानवादी, निधानक्ती समयानुसार सापेक्ष परिणाम वाली और अर्थकाली भाषा को बोलने वाला होता है। बौद्ध भिक्षु के पालनीय नियम बौद्धधर्म की प्रत्रज्या लेने के बाद भिन्नुओं को क्या क्या नियम पालन करने चाहिये और किन किन पदार्थों का उनको त्याग करना चाहिए इस सम्बन्ध में मज्झिम निकाय के लहत्यिपदोपम सुत्त में निम्नलिखित वर्णन मिलता है। .. __सो बीजगाम भूतगाम समारम्भा पटिपिरतो होति । एकभत्तिको रत्त परतो, पिरतो, विकाल भोजना। नम गीतवादित विस्सूकदसना पटिपिरतो होति । मालागन्धविलेपन धारण मण्डन विभूसनहाना.......। उचासयन महासयना जातरूपरजत पटिग्महणा..."। श्रामकक्षपटिग्गहणहत्थिकुमारिक पटिमगहण"। दासीदास पटिग्गहणा"" अजेलफ पटिहणाः कुक्कट सूकर पटिग्गहणा"। हथिगवास्सबलवा पटिग्गहणा" खेतवत्थूपटिग्यहणा"। दूतेश्यपहिणगमनानुयोगा। कय ,विक्कया"। सूलाकूट कंसकूट . मानकूटा.....!अकोटन बचन सिकति साचियोगा। छेदन बध बन्धनविपरामोस, पालोप सहसाकारा पटिविरतो होति । . . .. .... . "मम्मिाम निकाय' . अर्थ-वह बीजग्राम (सर्वजात के, बीज) और भूतग्राम (सर्ष प्राणिसमूह के समारम्भ-हिंसा) से निवृत्त है । वह एक बार
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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