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________________ ( ४२६ ) अपने निश्चय पर विश्वास था, और अन्त में वे अपने इसी मध्यम मार्ग से अपने साध्य में सफल हुए । उन्हें पैशाखी पूर्णिमा की रात नैरखना नदी के समीप बत्ती एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए बोधि ज्ञान प्राप्त हुआ । उस शान से चार भार्य सत्य आर्य अष्टाह्निक मार्ग प्रादि बौद्ध धर्म के मौलिक तत्त्वों को जाना। वे सात दिन तक वहीं तत्त्वों का चिन्तन समन्वय करते हुए बैठे रहे । इसी तरह अन्यान्य वृक्षों के नीचे बैठ चिन्तन करते हुए लग भग एक महीना पूरा किया, और इन धर्मतत्त्वों का प्रचार करने के लिये इन्होंने बनारस के पास "भृगवन इसी पत्तन" में रहे हुए पञ्च वर्गीय भिक्षुओं के पास जाकर अपने प्राविष्कृत धर्म तत्त्वों का उपदेश करना उचित समझा। बुद्ध गौतम वहां से "इसी पत्तन" को चले। जब वे पञ्चवर्गीय भितुओं की दृष्टि मर्यादा में पहुँचे तो भिनु परस्पर कहने लगे शाक्य गौतम बारहा है पर वह पहले का तपस्वी गौतम नहीं उसने तपोमार्ग को छोड़ दिया है। अच्छे खाने खाकर अब वह ध्या.। और मनोविजय की बातें कर रहा है। यहां माने पर उसका योग्य सत्कार नहीं किया जाय, भिक्षुओं की ये बातें चल रही थी और बुद्ध उनके आश्रम में पहुँचे । बुद्ध के सम्बन्ध में उन्होंने तात्कालिक निर्णय किया था उससे वे विचलित हो गये, पूर्ववत् बुद्ध का विनय किया और उन्हें भासन देकर वे स्ययं युद्ध के पास बैठ गये । बुद्ध ने अपने नये तत्त्वों का उनके सामने उपदेश किया और कौण्डिन्य मादि पांचों भिक्षु क्रमशः उनके अनुयायी बन गये।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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