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________________ भिक्षा पंच विधा ह्यता, सोमपान समाः स्मृताः। तासामेकतमयाऽपि, वर्तयन् सिद्धिमाप्नुयात् ।। अर्थ-यह पांच प्रकार की भिक्षा यज्ञ में सोमपान की तरह उपादेय है, इनमें से किसी भी एक भिक्षा से अपनी जीविका चलाता हुआ भिक्षु सिद्धि प्राप्त करता है। हेय भिक्षान्न ऋतु कहते हैंएकानं मधुमासश्च, अन्नं विष्ठादि दूषितम् । हन्तकारं च नैवैद्य, प्रत्यक्षं लवणं तथा ।। एतान् मुक्त्वा यति मॊहात्, प्राजापत्यं समाचरेत् । अर्थ-एक घर का अन्न, मधु मांस, विष्ठादि के सम्पर्क से दूषित अन्न. बिना भाव से दिया हुआ अन्न, नैवेद्य और लवण मोह के वश इस प्रकार के भिक्षान्न का भोजन करके भिक्षुक प्राजापत्य प्रायश्चित करे। पारशकर कहते हैंयतीनामातुराणां तु, वृद्धानां दीर्घरोमिणाम् । ... एकान्नेन न दोषोऽस्ति, एकस्यैव दिने दिने ॥ . अर्थ-बिमार, वृद्ध, लम्बी, बिमारी वाले पति को एकान्न ग्रहण करने में भी दोष नहीं है। ऋतु कहते हैं
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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