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________________ ( ३५१ ) क्रिया-हीनश्च मूर्खश्च, सर्वधर्म-विवर्जितः। निर्दयः सर्वभूतेषु, विप्रश्चाण्डाल उच्यते ॥३८०॥ अर्थः-सन्ध्यावन्दन, जप, होम नित्य-देवता-पूजन, अतिथि सत्कार, और वैश्वदेव इन कर्मों को करने वाला ब्राह्म देव ब्राह्मण कहलाता है। शाक, पत्र, फल, मूल, पर निर्वाह करने वाला, निरन्तर बनवास में रहने वाला, और प्रति दिन श्राद्ध करने में तत्पर रहने वाला मुनि ब्राह्मण कहलाता है। जो वेदान्त शास्त्र को नित्य पढ़ता हैं, सर्व संग का त्याग करता है, और सांख्ययोग के विचार में तत्पर रहने वाला ब्राह्मण द्विज कहलाता है। __ अस्त्र से प्रहत धनुर्धारियों को जिसने संग्राम में सर्व के सामने पराजित किया है ऐसा ब्राह्मण क्षत्र ब्राह्मण कहलाता है। __ खेती बाड़ी करने वाला. गौओं का पालक और व्यापार करने वाला ब्राह्मण वैश्य कहलाता है। लाग्य, नमक, कुशुम्भ, दूध, घी, मधु, और मांस इनका बेचने वाला ब्राह्मण शूद्र कहलाता है। चोर, लुटेरा, चोरों को सूचना करने वाला, दंशक, ( काटने वाला) मत्स्य-मांस भक्षण में आसक्त ऐसा ब्राह्मण निषाद कहा जाता है।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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