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________________ ( ३३२ ) न देखकर ग्राम जनों को पीड़ा देता है, इस कारण शव के पास उसके उपकरण रखने आवश्यक हैं । सहि निवेसण साही गाम मज्के य गाम दारे य । अंतर उज्जाणंतर निसीहिया उट्ठिए वोच्छं ॥ ५४ ॥ सह निवेसण साही गामद्र चेव गाम मोत्तब्बो । मंडल कंडद्दशे निसीहिया चैव रज्जं तु ॥ ५५ ॥ अर्थः–वसति ( मरण स्थान ) बाड़ा, सेरी ग्राम मध्य ग्रामद्वार, ग्रामोद्याम के बीच और निषद्या ( परिष्ठापन भूमि ) इन स्थानों में से किसी भी एक स्थान में यक्षावेश होकर शव के उठ जाने पर श्रमणों को क्या करना चाहिये, यह आगे की गाथा में बताते हैं । वसति से वसति का, निवेशन से निवेशन का, शाखी ( रध्या ) से शांखी का ग्राम मध्य से ग्रामार्द्ध का, ग्राम द्वार से ग्राम का, ग्राम और उद्यान के बीच से मण्डल - काण्ड का ( मण्डल से अधिक व्यापक प्रदेश ) उद्यान निषद्या के बीच से देश और निषद्या भूमि से शव के उठने पर राज्य छोड़ कर श्रमणों को अन्य राज्य में चला जाना चाहिए । , सिवा कारणेहिं तत्थ वसंताण जस्स जोउ तत्रो । अभिगहियाण भिगहियो सा तस्स उ जोग परिवुड्डी || ५६ || अर्थः- रोगोपद्रवादिक कारणों से माधु उस स्थान को छोड़ कर दूर न जा सके तो वहीं रहते हुए तप में योग वृद्धि करे
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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