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________________ ( २८० ) अर्थात् - आचाराङ्ग १, सूत्रकृताङ्ग २, स्थानाङ्ग ३, समवायाङ्ग ४, व्याख्याप्रज्ञप्ति ५, ज्ञाताधर्म कथाङ्ग ६, उपासक दशाङ्ग ७, अन्त कृद्दशाङ्ग, अनुत्तरोपपातिक दशाङ्ग ६ प्रश्न व्याकरण १०, विपाक त ११, और दृष्टिवाद १२, ये गणि पिटक के बारह अङ्गों के नाम हैं । अङ्ग शब्द यहां मौलिक श्रुत के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । निर्मन्थ प्रवचन के उपदेशक तीर्थङ्करों ने उक्त गरिण पिटक में निर्ग्रन्थ प्रवचन का सम्पूर्ण ज्ञान भर दिया था, जिसे पढ़ कर निर्प्रथ श्रमण त्रिकाल ज्ञानी बन जाते थे । आर्य भद्रबाहु और स्थूलभद्र तक द्वादशाङ्ग गरिण पिटक अविच्छिन्न रहा, परन्तु आर्य स्थूल भद्र के बाद उसमें से पूर्वगत श्रुत का कुछ अश नष्ट हो गया और आर्य स्थूल भद्र के शिष्य आर्य महागिरि तथा श्रार्य सुहस्ती केवल दश पूर्वधर ही रहे । अन्तिम दश पूर्वधर आर्यवज्र के बाद दशवां पूर्व भी खण्डित हो गया । उनके पास पढने वाले आर्य रक्षित तथा आर्या के शिष्य आर्य वज्रसेन प्रमुख के पास साढ़े नव पूर्व से अधिक श्रुत ज्ञान नहीं रहा था । आर्यरक्षित द्वारा जिन प्रवचन में क्रान्ति स्थविर आर्य रक्षित विक्रमीय द्वितीय शताब्दी के श्रुतधर थे, दीर्घ जीवी और विपुल श्रमण श्रमणी गण के नेता थे । इनके समय तक देश, काल, पर्याप्त रूप से बदल चुका था । मानव बुद्धि 1
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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