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________________ निष्पक्षता का विश्वास दिलाकर वहां बुलाते । इस पर वह.सभा में आ जाता तो उसके सम्बन्ध में उचित कार्यवाही करके दण्ड प्रायश्चित्त आदि द्वारा झगड़ा निपटा दिया जाता था, परन्तु अपराधी के हाजिर न होने अथवा संघ का दिया हुआ न्यायसङ्गत फैसला न मानने की अवस्था में उसे संघ से बहिष्कृत उद्घोषित किया जाता था, तब से उसका किसी भी कुल ओर गण से सम्बन्ध नहीं रहता, और न उसे किसी भी प्रकार के संघ समवसरण में आने का अधिकार ही रहता । श्रमणों का श्रृताध्ययन श्रमण-गण अपने शिष्यों को लौकिक विद्याओं के अतिरिक्त उनको आगम श्रुत पढ़ाने के लिये भी सुन्दर व्यवस्था रखते थे । ___ नव दीक्षित श्रमण प्रथम अपने आचार विषयक श्रुत का अध्ययन करता और साध्वाचार में प्रवीण बनता फिर उसको विधि पूर्वक उत्तरोत्तर आगम श्रत की शिक्षा दी जाती थी। . आगम श्रुत से हमारा अभिप्राय अङ्ग सूत्रों से है, और अङ्ग सूत्र निर्ग्रन्थ प्रवचन में बारह माने गये हैं । जो शास्त्रीय परिभाषा में "द्वादशाङ्ग गणि पिटक' इस नाम से पहिचाने जाते हैं । गणि जिला के बारह अङ्ग सूत्रों के नाम निक लिखित हैं अायारो, सूयगडो, ठाण, समवायो, वियाह प्रन्नति, नायाधम्म कहाओ, वासरा दसाओ, अंतकडसाओ, अरगुत्तरोव वाय दसामो, पन्हा वागरणं, विवाग सुझं, दिहिवारो।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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