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________________ ( २३७ ) ६-श्रापुच्छणा ( आपृच्छा ) जैन श्रमण कोई भो खास कार्य अपने नायक को पूछे बिना नहीं करता । इसलिये जो काम उसको करना आवश्यक है उसको करने के पहले वह अपने नेता को पूछता है कि भगवन् ! मैं अमुक काम करूँ ? गुरु की आज्ञा प्राप्त होने पर वह उस कार्य की प्रवृत्ति में लगता है। . ७-पडिपुच्छा ( प्रतिपृच्छा ) जिस काम के करने के लिये श्रमण ने अपने बड़े से प्रथम पूछ कर 'प्राज्ञा प्राप्त करली होती है, उसी काम को प्रारम्भ करने के समय फिर पूछना उसका नाम प्रतिपृच्छा है, क्योंकि गुरु की आज्ञा प्राप्त करने के बाद कुछ समय तो निकल ही जाता है और कोई अन्य जरूरी कार्य भी उपस्थित हो सकता है,इस कारण तात्कालिक पृच्छा से आवश्यक नये काम में गुरु उसे रोक सके । ८-छंदणा (छंदना) भिताचर्या में जाते समय श्रमण अन्य श्रमणों को पूछता है, आपकी इच्छा कुछ मंगवाने की हो तो कहो मैं लेता आऊंगा, इसका नाम छंदना है। • . -"निमंतणा" (निमन्त्रणा) मिक्षान लेकर आने के बाद बालोचना आदि कर के आहार लाने वाला साधु अपने गुरु अथवा अन्य साधुओं को प्रहार
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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