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________________ । . २३२ ) धूवणेत्ति बमणेय, बत्थी कम्म विरेयणे । अंजणे दंतवण्णेय, गाया भंग विभूषणे ॥६॥ सव्वमेयमणाइन्न, निम्गंथाण महेसिणं । संजमम्मि य जुत्ताणं, लहुभूय विहारिणं ॥१०॥ अर्थ-ौदेशिक ( साधु के निमित्त बनाया हुआ ) क्रीतकृत ( उनके निमित्त खरीदा हुआ ) नियाग ( आमन्त्रित ) पिण्ड अभिहृत ( सामने लाया हुआ ; और रात्रि भक्त (रात्रि भोजन ) इत्यादि प्रकार के आहार निग्रन्थ श्रमणों को अग्राह्य हैं । तथा स्नान गन्ध पुष्पमाला वायु वीजन ( पंख ) सन्निधि (पास में बासी रखना) गृहस्थामत्र ( गृहस्थ के बर्तन में भोजन ) राजपिण्ड ( अभिषिक्त राजा के घर का आहार ) किमिच्छक ( क्या चाहते हो यह कह कर दिया जाने वाला ) संवाहन (शरीर मर्दन) दन्त प्रधावन, सांसारिक कार्य सम्बन्धी प्रश्न देह प्रलोकना ( काच आदि में मुख शरीर आदि का देखना ) अष्टापद (जुआं) खेलना नालिका ( द्यूत क्रीडा विशेष ) छत्रधारण (निरर्थक शिर पर छत्र धारण करना ) चिकित्सा ( रोग की दवा करना ) उपानह (पैरों में जूता पहनना ) ज्योतिः समारम्भ ( अग्नि जलाना ) शैय्यातर पिण्ड ( उपाश्रय के मालिक के घर का आहार ) आसनन्दीय (सूत की रस्सी से अथवा वेत की छाल से बनी हुई कुर्सी पर बैठना ) पर्यक (पलंग पर बैठना सोना ) गृहान्सर निषद्या ( दो घरों के बीच अथवा वस्ती वाले गृहस्थ के घर में भासन लगाना) कायोद्वर्तन (शरीर पर से मैल हटाना अथवा सुगन्धित पदार्थ
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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