SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विहरन्ति नो आमिस दायादाति । अहंपि तेन न आदित्सी 'भवेव्यं धम्मदायांदा सत्थु सावका विहरन्ति नो आमिस दायादाति "तस्मातिह में भिक्खवे धम्मदायादा भवथ मा आमिसदायादा अस्थि में तुम्हेसु अनुकम्मा किंति में सावका धम्मदाया भवेय्यं 'नो आमिसदायादाति । “धम्मदायाद सुत्त" पृ० ८ - अर्थ:-हे भिक्षुओ ! तुम मेरे धर्म के दायाद (हिस्सेदार) बनो आमिष भोजन के दायाद न बनो, हे भिन्नुओ मेरी तुम्हारे ऊपर अनुकम्पा ( दया ) है, वह क्या ? कि, मेरे श्रावक (भिक्षु) धर्म के दायाद हो न कि आमिष के दायाद; हे भिक्षुओ यदि तुम आमिष-दायाद बनोगे तो तुम भी उससे लोकादेश (लोक गर्दा) के विषय बनोगे कि शास्ता के श्रावक आमिष के दायाद बन कर विचरते है,नकि धर्म के दायाद, और हे भिक्षुत्रो ! इससे मैं भीलों का देश का विषय बनूगा कि शास्ता के श्राक्कधर्म के दायाद बनकर विचरते हैं, नकि धर्म के दायाद बन कर । और हे भिक्षुओ! तुम अगर आमिष के दायाद न बन कर धर्म के दायाद बन कर विचरोगे तो हे मिक्षुओ! इससे तुम खुद लोकों के आदेश (प्रशंसा ) के विषय बनोगे कि शास्ता के श्रावक धर्म के दायाद बन कर विचरते हैं नकि आमिष के दायाद वन कर । और हे भिसुनो! इससे मैं भी लोकादेश लोकस्तुति का पात्र बनूंगा कि धर्म के दायाद बन कर शास्ता के श्रापक विचरते हैं, आमिष के दायाद नहीं। इस वास्ते हे भिक्षुओ ! तुम मेरे धर्म दायाद बनो नकि आमिष दायाद । मेरी तुम पर अनुकम्पा है, मैं चाहता हूँ कि मेरे श्रावक धर्म के दायाद बनें, नकि आमिष के दायाद ।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy