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________________ १५८ ) गुठली तथा बीज शेष रहे हैं, ऐसा फल मेवा आदि मिलता हो तो ग्रहण न करे। गृहस्थ के घर में भिक्षार्थं गये हुए भिक्षुणी को उस प्रकार के अधिक बीज गुठली वाले फल में वा लेने के लिए गृहस्वामी अथवा उसकी स्त्री उसे निमन्त्रण करे कि हे आयुष्मन् ! श्रमण ! यह अधिक बीजवाला फल मेवा तुम चाहते हो क्या ? इस प्रकार का शब्द सुनकर वह पहले ही सोच कर कहे, हे आयुष्मान् । श्रथवा हे बहन । मुझे नहीं कल्पता, बहु गुठली और कांटों वाला फल मेवा यदि तुम मुझे देना चाहती हो तो इसमें से गूदा और गर्भ रूप जो सार भाग है उसे दे दो, गुठली आदि नहीं यह कहते हुए भी गृहस्थ एकदम वह कचरे वाली चीज के बहुत विभाग करके पात्र में डाल दे तो वह पात्र यदि दूसरे के हाथ में अथवा दूसरे के पात्र में रक्खा हो तो उसे कहना यह प्राकः अनेषणीय है, हमें नहीं कल्पता, यदि वह पात्र सहसा अपने हाथ में ले लिया हो तो न भला कहे, न बुरा कहे, वह उसको लेकर एक तरफ हट कर किसी उद्यान में वृक्ष के नीचे उपाश्रय में जहां कीटी आदि सूक्ष्म जन्तुओं के अण्डे न हों तथा मकडी के जाले न हों बहां फल का गर्भ तथा मेवा का गूदा खाकर गुठलियां बीज आदि कूडा कर्कट लेकर एकान्तं में जा जली भूमि आदि निर्जीव भूमि को झाड कर वहां रख दे निशीथाध्ययन नवमोद्द ेश के ३ - " मंस खायाया वा मच्छ खायारणा वा बहिया निग्गयाणं असणं वा पाणं वा अइमं साइमं वा पडिग्गा हेइ"
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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