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________________ हैं, मार्गों में अधिक भीड़ नहीं है, बुद्धिमान सुगमता से निष्क्रमण प्रवेश कर सकता है। उसके वाचना, पृच्छना, परिवर्तना अनुप्रेक्षा, और धर्मानुयोग में कोई बाधा नहीं आती; इस परिस्थिति को देखकर भिक्षु उस महाभोज के स्थान पर प्रणीत आहार लेने को जाने निश्चय कर सकता है। ___ २-- “से भिकखु वा २ से जं बहु आट्ठियं वा मंसं वा मच्छं वा बहु कंटयं अस्सि खलु० तहप्पगारं बहु अट्ठियं वा भंसं लाभे सन्ते से भिक्खू वा सियाणं परो बहु आट्ठियं एणं मंसेण वा मच्छेण वा उपनिमंतिज्जा-०आउ संतो समणा । अभिकखसि वहु अट्ठियं मंसं परिगाहित्तए २ एवप्पगारं निग्घोसं सुच्चा निसम्म से पुव्यामेव आलोइज्जा--आउ सोभि वा २ नो खलु में कप्पई बहु• पहिगा० अभिकखसि में दाउ जावइयं तावइयं पुग्गलं दला हि, मा य अट्ठियाइ, से सेवं वयंतस्स परो अभिहृदु अंतो पडिग्गहगंसि बहु परिभाइत्ता निहटु दलइज्जा तहप्पगारं पडिग्गहं पर हत्थं सि पर पापंसिवा अफा० अने० से आहश्च पडिग्गाहिए सिया तं नो हित्ति वइज्जा नो अणिहित्ति वइज्जा से तमायाय एगंत मवक्क मिज्जा २ अहे आसमंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अप्पपंडे जाव संताण ए मंसगं मच्छग भुच्चा अट्ठियाई कंकए गहाय से तमायाय एगंत मवक्कमिज्जा २ अहे झाम थंडिलंसि वा . जाव पमज्जिय पर?विज्जा ।। (सू०५८) चू० १ पिण्डै० १ उ० १ ५० ३५४ . अर्थ-वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी ऐसा फल मेवा का गूदा जिसमें से सार भाग ले लिया गया है और अधिक मात्रा में
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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