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________________ (. ७० ) कुछ ब्राह्मणों के उत्तरकालीन भागों में हैं । हिन्दू इतिहास के तीनों कालों में और मनु की तथा दूसरी छन्दोबद्ध स्मृतियों में भी प्रायः तीन ही वेद माने गये हैं। यद्यपि कभी कभी अथर्वण, वेदों में गिनने जाने के लिये उपस्थित किया जाता था, परन्तु फिर भी ईतवी सन् के बहुत पीछे तक यह ग्रन्थ प्रायः चौथा वेद नहीं माना जाता था । जिस काल का हम वर्णन कर रहे हैं, उस काल की पुस्तकों में से बहुतेरे वाक्य उद्धत किये जा सकते हैं, जिनमें केवल तीन ही वेद माने गये हैं, परन्तु स्थान के प्रभाव से हम उन वाक्यों को यहां उद्ध त नहीं कर सकते। हम अपने पाठकों को केवल इन ग्रन्थों के निम्न लिखित भागों को देखने के लिये कहेंगे अर्थात् ऐतरेय ब्राह्मण ५-३२ । शतपथ ब्राह्मण ४-६-७, ऐतरेय आर. एयक ३-२-३, बृहदारण्यक उपनिषद् १-४, और छान्दोग्योपनिषद् ३ और ७ । इसके अन्तिम पुस्तक में तीनों वेदों का नाम लिखने के पीछे अथर्वाङ्गीर की गिनती इतिहासों में की है । केवल अथर्ववेद के ही ब्राह्मण और उपनिषदों में इस पुस्तक को वेद मानने का काफी उल्लेख मिलता है । यथा गोपथ ब्राह्मण का मुख्य उद्देश एक चौथे वेद की आवश्यकता दिखाने का है । उसमें यह लिखा है कि चार पहियों बिना गाड़ी नहीं चल सकती, पशु भी चार पगों बिना नहीं चल सकता और न यज्ञ ही चार वेदों बिना पूरा हो सकता है। ऐसे विशेष युक्तियों से केबल यही सिद्ध होता है कि गोपथ ब्राह्मण के बनने के समय तक भी चौथा घेद प्रायः नहीं गिना जाता था । अथर्वण और अंगिरा प्रोफेसर किटनी के कथनानुसार प्राचीन और पूज्य हिन्दू वंशों के अर्द्ध पौराणिक नाम
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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