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________________ ऐसा अनुमान किया जाता है कि मम्भवतः पुराने कर्म को सुधारने और मन्त्रों को व्याख्या से अलग करने के लिये जनक की सभा के याज्ञवल्क्य ने एक नई वाजसनेयी सम्प्रदाय खोली, और इसके उद्योगों का फल एक एक नई (वाजसनेयी ) संहिता और एक पूर्णतया भिन्न (शतपथ ) ब्राह्मण का निर्माण हुआ। __परन्तु यद्यपि श्वेतयजुर्वेद के प्रकाशक याज्ञवल्क्य कहे जाते हैं, पर इस वेद को देखने से जान पड़ेगा कि यह किसी एक मनुष्य वा किसी एक ही समय का संग्रह किया हुआ नहीं है। इसके चालीसों अध्यायों में से केवल प्रथम अठारह १८ अध्यायों के मंत्र शतपथ ब्राह्मण के प्रथम नौ खण्डों में पूरे पूरे उद्ध त किये गये हैं. और यथाक्रम उन पर टिप्पणी भी दी गयी है । पुराने श्याम यजुः र्वेद में इन्हीं अठारहों अध्यायों के मन्त्र पाये जाते हैं। इसलिये ये अठारहों अध्याय श्वेतयजुर्वेद के सब से पुराने भाग हैं और सम्भवतः इन्हें याज्ञवल्क्य वाजसनेय ने संकलित व प्रकाशित किया होगा । इसके आगे सात अध्याय सम्भवतः उत्तर काल के हैं और शेष पन्द्रह अध्याय तो निस्संदेह और भी उत्तर काल के जो. हैं. अच्छी तरह से परिशिष्ट वा खिल कहे गये हैं। ...... ... अथर्ववेद के विषय में हमें केवल यह कहने ही की आवश्यकता है कि जिस काल काः हम वर्णन कर रहे हैं उसके बहुत वर्ष पीछे तक भी इस ग्रन्थ की वेदों में गिनती नहीं की जाती थी। हां ऐतिहासिक काव्यकाल में एक प्रकार के ग्रन्थों की जिन्हें अथर्वाङ्गीर कहते हैं- उत्पत्ति अवश्य हो रही थी, जिसका उल्लेख
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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