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________________ के क्रम से ऋग्वेद के ऋषियों की कल्पित उत्पत्ति दी है, और इसके पीछे सूक्तोंकी, ऋक् की, अर्घ ऋक् की, पदकी और अक्षरों तक की गिनती दी है । इससे जान पड़ता है कि पौराणिक-काल में ऋग्वेद संहिता का मंडल-मंडल करके केवल क्रम ही नहीं कर लिया गया वरन् सावधानी से भाग उपभाग कर लिया गया । पौराणिक काल के अन्त तक ऋग्वेद की हर एक ऋचा हर एक शब्द और हर एक अक्षर तक की भी गिनती करली गयी थी। इस गिनती के हिसाब से ऋचाओं की संख्या १०४०२ से लेकर १०६२२ तक, शब्दों की संख्या ५३३८२६, और अक्षरों की संख्या ४३२०००० है। ऋग्वेद की प्रार्थना कितनी सरल होती थी इसके उदाहरण के रूप में एक इन्द्र की प्रार्थना का अनुवाद नीचे दिया जाता है, पाठकगण ध्यान से पढ़ें। _ 'हल के फाल से जमीन को आनन्द से खोदे, मनुष्य बैलों के पीछे आनन्द से चले । पर्जन्य पृथ्वी को मीठे मेंह से तर करे । हे सुनासीर ! हम लोगों को सुखी करो।' - जौ और गेहूँ खेत की खास पैदावार और भोजन की खास वस्तु जान पड़ती है । ऋग्वेद में अनाज के जो नाम मिलते हैं, वे कुछ सन्देह उत्पन्न करने वाले हैं क्योंकि पुराने समय में जो उनका अर्थ था वह आजकल बदल गया है। आजकल संस्कृत में यव शब्द का अर्थ केवल 'जौ' है पर वेद में इसी शब्द का मतलब
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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