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________________ ( ५६ ) . बालक की नई सरल विश्वास झलकता है, जिन्हें बलि दिया जाता था, सोमरस चढ़ाया जाता था, और जिनसे सन्तान, पशु, और धन के लिये स्तुति की जाती थी, और पञ्जाब के काले आदिवासियों के साथ जो अब तक लड़ाई होती थी । उसमें आर्यों की मदद करने के लिये प्रार्थना की जाती थी । . " ऋग्वेद में के सूक्त दश मण्डल के बंटे हैं। कहा जाता है कि पहिले और अन्त के मण्डलों को छोड़कर बाकी जो आठ मण्डल हैं, उनमें से हर एक को एक-एक ऋषि ( अर्थात् उपदेश करने वालों के एक-एक घराने ) ने बनाया है। जैसे दूसरे मण्डल को गृत्समद ने तीसरे को विश्वामित्र ने, चौथे को बामदेव ने पाँचवे को अत्रि ने, छठे को भारद्वाज ने सातवें को बसिष्ठ मे, आठवें को कब ने और नवमे को अंगिरा ने बनाया है । पहिले मण्डल में एक सौ इकानवे सूक्त हैं जिनमें से कुछ सूक्तों को छोड़कर और सबको पन्द्रह ऋषियों ने बनाया है । दसवें मण्डल में भी १९१ सूक्त हैं और इनके बनाने वाले प्रायः कल्पित हैं ! ऋग्वेद के सूक्तों को कई सौ वर्ष तक पुत्र अपने पिता से या चेले अपने गुरु से सीखते चले आये। लेकिन उनका सिलसिलेवार संग्रह बहुत पीछे अर्थात् पौराणिक काल में हुआ । दसवें मण्डल का सत्र अथवा बहुत सा हिस्सा इसी काल का बना हुआ जान पड़ता है, जो कि पुराने सूक्कों में मिलाकर रक्षित रखा गया । ऋग्वेद का क्रम और संग्रह जैसा कि वह अब है पौरालिक काल में समाप्त होगया होगा । ऐतरेय आरण्यक (२,२) में मंडलों
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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