SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | विज् ५.५. 7. नृपतेः पुत्रस्य यादृशो नृपतौ विश्वासो नास्ति, तादृशो विश्वासः शिष्यस्य गुरा अस्ति । 8. शिष्यः गुरोः शरीरात् पृथक्, किन्तु इच्छया तु गुरोरभिन्न एव । 9. या इच्छा गुरोः सैवेच्छा यस्य शिष्यस्य स शिष्यः सर्वेषु शिष्येषु श्रेष्ठोऽस्ति । [3] पूटती विगतो :નિ. અર્થ | ધાતુ |ગણ પદ પુરુષ એકવચન દ્વિવચન બહુવચન 1.| iq | वाञ्छ | १ | ५.५. | २ | वाञ्छसि | वाञ्छथः | वाञ्छथ ઊડવું डी(डय्) | १ मा.५.| 3 | डयते | डयेते डयन्ते ડરવું | ६ |.५.| १ | विजे | विजावहे | विजामहे | प्रसिद्ध ४२j | प्रथ् | १० | ७.५.|| २ | प्रथयसि | प्रथयथः | प्रथयथ 5. संत डोj | युज् | ४ मा.५.| 3 | युज्यते | युज्यते | युज्यन्ते 6.] दू२ ४२j | अप+नी १ | ५.५. | १ |अपनयामि | अपनयावः अपनयामः 7.| त्रास. पामj | त्रस् त्रस्यति | त्रस्यतः | त्रस्यन्ति | 8. संभावित डो| सम्+भू | १ | ५.५. | २ | सम्भवसि | सम्भवथः | सम्भवथ 9. q j | वर्ण |१०| 3.५. | १ | वर्णयामि | वर्णयावः | वर्णयामः [4] संधि :___1. घटादन्यः 2. पङ्काज्जायते 3. अपीत्यर्थः 4. महावीरस्तत्र 5. वाक्षु [5] अधूरी वितो :નિ. તૃ. પુ. એ.વ. મૂળધાતુનું પદ ગણાપુરુષ એકવચન, દ્વિવચન બહુવચન 1.| आशंसते आ+शंस् | 1.५.१ | १ | आशंसे आशंसावहे | आशंसामहे 2. अनुरुध्यते अनु+रुध् | मा.५.| ४ | २ अनुरुध्यसे | अनुरुध्येथे |अनुरुध्यध्वे 3. निषूदयते नि+सूद् | मा.५. ૧૦ ૩ निषूदयते | निषूदयेते | निषूदयन्ते 4. प्रव्रजति प्रव्रिज प्रव्रजसि | प्रव्रजथः | प्रव्रजथ 5. परिणयति परि+नी परिणयति | परिणयतः | परिणयन्ति 6. अपनयति अप+नी | ५.५.| १ | १ |अपनयामि | अपनयावः |अपनयामः 7. अवतरति अव+तृ ५.५. | १ | 3 | अवतरति | अवतरतः | अवतरन्ति 8. निर्गच्छति | निर्+ गम् | ५.५. | १ | २ | निर्गच्छसि | निर्गच्छथः | निर्गच्छथ 9. मन्यते ___ मन् | २.५.| ४ | १ | मन्ये | मन्यावहे | मन्यामहे ** स२१ संस्कृतम् - 3 • २७ . 5406-१/१४
SR No.022983
Book TitleSaral Sanskritam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages216
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy