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________________ (४) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ विधिनो योग (आराधननी प्राप्ति) धन्यपुरुषोने होय छे. विधिपक्षy आराधन करनार सदाकाल धन्य पुरुषो छे. विधिनुं बहुमान करनार धन्यपुरुषो छे अने विधिपक्षनुं दूषण नहि देनार पण धन्य छे. २. विधिसहित उत्तमयोगनी आराधन सामग्री मळवा पूर्वक ते सफळ करवा आराधनामां उद्यमवंत थq ते अपूर्व भाग्योदयथी पुण्यवान् जीवोनेज होय छे, आ आराधना मोक्षप्राप्तिना साधनरूप आलंबनना अवलंबनथीज थाय छे. अविच्छिन्न प्रभावशालि त्रिकालाबाधित श्री वीतरागशासनमां शाश्वत अव्या बाध मुक्ति सुखने आपनार आराधना करवा लायक असंख्य योगो पैकी श्रीसिद्धचक्र महाराज जेवो परम योग एक पण नथी, कयुं छे केआलंबणाणि जइवि हु, बहुप्पयाराणि संति सत्थेसु । तहवि हु नवपयज्झाणं,सुपहाणं बिंति जगगुरुणो॥१॥ ___ अर्थ-जोके शास्त्रोमा घणा प्रकारनां आलंबनो (मोक्ष साधनो) छे. तो पण निश्चयथी जगद्गुरु श्री तीर्थकर
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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