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________________ (३) नवपद माहात्म्य विचार || तत्तो तिजयपसिद्धं, अट्टमहासिद्धिदायगं सुद्धं । सिरिसिद्धचकमेयं, आराहह परमभतीए ॥ ६॥ आ श्री सिद्धचक्रयंत्र परमतत्त्वरूप, परमरहस्यरूप, परम मंत्ररूप परमार्थस्वरूप अने परमपद स्वरूप वर्णव्युं छे (दशमा विद्याप्रवादपूर्व मांथी ऊद्धर्यु छे ). ५. ( नवपदाराधनना फलरूप माहात्म्य तथा उपदेशसार ). ते माटे (विवेक भव्य जीवो ! ) 'त्रण जगत्मां प्रसिद्ध' आठ महासिद्धिओने आपनार विशुद्ध आ श्री सिद्धचक्रयंत्रनुं उत्कृष्ट ( बहुमान युक्त) भक्तिश्री ' आराधना करो !' ६. अनुष्ठानमां विधिनुं माहात्म्य. आसन्न सिद्धियाणं, विहिपरिणामो य होइ सयकालं । विहिचाओ अविहिभत्ती, अभव्वजिअदूरभव्वाणं ॥१॥ अर्थ - थोडाकालमा मुक्तिगामि जीवोने विधिनो परिणाम सदाकाल (हमेशा) होय छे, अभव्य अने दीर्घ संसार परिभ्रमणकरनार दूर भव्य जीवोने विधिनो त्याग अने अविधि प्रत्ये भक्ति रहे छे. १. धन्नाणं विहिजोगो, विहिपक्खाराहगा सया धन्ना । विहिबहुमाणी धन्ना, विहिपक्ख अदूसगा धन्ना ॥ २॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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