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________________ उ२२ परिशिट (७) अणहिल्ल पत्तन मंडन ८-शांति जिन स्तवन (राग केदारा गौडी) देखउ माई! आसा मेरइ, मनकी सयल फली रे । उलट अंगि न माइ मेरउ, प्रभुवान चडावइ रे, मोहन सरूप रे, सेवउ श्रीसंति जिनराय ॥१॥ देखउ०। सुरतरु अंगणि सफल फल्यउ, पिसुन लुलइ मेरइ पाय, नवनिधि रिद्धि सिद्धि संपद भली, सहज मिली मुझ आय ॥२॥ देखउ०। पूरव भव राख्यऊ सरण पारेवउ, ए जस त्रिभुवन गाइ । महिर करउ सेवक भणी,जिम दुख दूरि पलाइ॥३॥ देखउ० । जनम जिणंद तणइ असिव दम्यउ, तिण नाम संति सुहाइ । नीकीहो लीला प्रभु ! ताहरी, चकि जिनराज कहाइ ॥४॥ देखउ०। अणहिल्ल पाटणि भेटियउ, चरण नमुं चित लाइ। श्रीजिनचंदसूरि इम भणइ, नितु नितु तेज सवाइ॥५॥ देखउ०। ९-पार्श्वजिन लघु स्तवन जगदानंदन जिनवर पाया, पाया परम प्रमोद पसाया। साया संतति संपति साधी, साधीना हवइ जे अपराधी ॥१॥ आपणा पूं जिणसुं प्रेरीजइ, रीजइ जउ मूरति देखीजइ। देखीजइ आवइ सुभ भावइ, भावइ जे मनि ते सवि पावइ ॥२॥ अनुपम रूप त्रिजगजन तारण, रण विवाद प्रमाद निवारण । वारण कुमत महीरुह भंगइ, भंगइ विविध भजउं प्रभु रंगइ ॥३॥ पावन बावन चंदन सारइ, कुंकुम अगरु कुसुम घनसारइ। रचइ भगति जे धन अनुसरइ, ते दुख दुरगति मूल विसारइ॥४॥ तुझ पद पंकज मुझ मन भमरउ, लीण रह्यउ छइ ऊउ इणि भमरउ। मइगल विंझ वणइ ज्यु माचइ, बदरी वन तिम किमइ न राचइ ॥५॥
SR No.022908
Book TitleYugpradhan Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherPaydhuni Mahavirswami Jain Derasar
Publication Year1962
Total Pages440
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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