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________________ ३२१ સુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ मूरति मोहन वेलडी रे, मन मेल्हणीय न जाय, मेरे मोहन!। ते स्यउ मोहन तइ कियऊ हो लाल, विरते मोहि बताय, मेरे मोहन !॥४॥ पोन्हऊ प्रगट्यऊ दूधनऊ रे, सुर नर असुर समक्ख, मेरे मोहन!। प्रेम किसऊ ते पाछलऊ हो लाल, कहो प्रभु ते परतक्ख, मेरे मोहन ! ॥५॥ जिणवर कहइ ए नेहलू रे, रह्या उअरइ छयासी रात, मेरे मोहन ! तुम्हनइ हेज घणऊ तिणइ हो लाल, हुँ सुत तूं मेरी मात, मेरे मोहन!॥६॥ वीर तणी वाणी सुणी रे, कहइ इम अम्हां तात, मेरे मोहन !। वीर प्रसू हूआ म्हे हिवइ हो लाल, म्हे बेऊं जगत्र विख्यात, मेरे मोहन ! ॥७॥ एम कहीनइ आदरइ रे, चतुर महाव्रत चा(र)ह चा(र)ह, मेरे मोहन!। नेह इसऊ जगि जाणीयइ हो लाल, मा पिउ सुत त्रिहुं मांहि, मेरे मोहन !॥८॥ तीने एक मत थई रे, पाम्यऊ परमाणंद, मेरे मोहन!। श्रीजिणचंद कहइ इसुं रे लाल, द्यो मुझ चिरि आणंद, मेरे मोहन ! ॥९॥ वीर सुणो मुझ वालहा हो लाल । इति श्रीमहावीर-देवाणंदा गीतं । श्रीरस्तु ।
SR No.022908
Book TitleYugpradhan Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherPaydhuni Mahavirswami Jain Derasar
Publication Year1962
Total Pages440
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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