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________________ परिशिष्ट (9) आजती अंजन काइ अमरी, देव कुमरी ( काय ) काइ । मृगनाभि कुंकुम देवचंदण, घसीय तिलक वणाय ॥ प्रभु वदति कोमल वयण तिमतिम, मात तात सुहाय । करइ कलिसुर नर कूअरसूं वलि, अपछरसू निजिदाय ॥ ५ ॥ हिंडोल इ० । चालीस धनुष प्रमाण अंकित, चलण सुर सारंग ॥ सारंग तनु सारंग गुरु, सम धीरिमा सारंग । सारंग वंस विलासनी वर, वण्यऊ वर सारंग । सारंग गुण सारंग वसुधा, गरजति जिम सारंग । हिंडोलणइ० । इम सकल त्रिभुवनभवनमांहि, सबल जसु सोभाग । सुर असुर नर नारि तणऊ, प्रभु ऊपरइ बहु राग । मंडलीक चक्रवर्त्ति तणा सुख लही, लाऊ पद वीतराग । गावंति गुण 'जिणचंद' दिन दिन, इणपरि सारंग राग ॥७॥ ( हिंडोलणइ ) माई झूलता संतिकुमार, मुझ मन हरख अपार । इति श्रीशांतिनाथ हिंडोलणागीतं । २ नेमिराजुल चउमासिया गीत श्रावण आज सुहामणऊ, वसुधा वरसइ मेह । चिहुं दिशि चमकइ दामनी, जागइ नवल सनेह । जागति नवल सनेह, सखि हे कुंअरि राजिमती कहइ । जवुराइ ! जाइ मनाय आणो, एकुण पावस दिन वहइ ॥ इण समइ सुरंगा नयर दीसइ, रएण पिण रलियामणऊ । पियु तुम्हे आवो सुख पावो श्रामण आज सुहामणउ ॥ २ ॥ भला रे पधाऊ भाइवऊ, गरुऊ गुहर गंभीर । हर घटा कर गाजीयऊ, जगिमइ जलधर धीर । जगमाहि जलधर धीर आपी, वरस वरस वली वली वेलडी । ( वेलडी) रही लयलाय तरुसुं, मोरनसुं जिम ढेलडी । तिम रमण रमणी संग इण रितु, रंग धरइ दिन दिन नवऊ । संजोग सुंदर रति पुरंदर भला रे, पधार्यऊ भाद्रवऊ ॥ २ ॥
SR No.022908
Book TitleYugpradhan Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherPaydhuni Mahavirswami Jain Derasar
Publication Year1962
Total Pages440
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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