SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ ढाल - हिव वलितां वलि स्वामि हणाद्रइपुरि भेट्या जिन वेलांगरी, कालं ( दरि) झरि ( ? ) पुरि ठामि प्रमुख नयर प्रभु वंद्या मनि ऊलट धरी ए ॥ १७ ॥ कुशलखेम संपत सोवनगिरिवर शुभ सुकने निज घरि वली ए । वंद्या जिनवर पास आसज मनतणी जिनवर दरसणि सवि फली ए ॥ १८ ॥ ૩૦૫ से (? जे ) समरइ अरिहंत तसु घरि संपदा कित्तिरयण सिरि सो वरइ ए । सेव्यां हर्षविशाल प्रमोद अंगि वली हर्षधर्म ते मनि धरइ ए ॥ १९ ॥ गच्छ खरतर सिणगार श्रीजिनचंदसूरि सांनिधि तीरथ बंदिया ए । घाr ( ? गाय ) कमांहि प्रधान साधुमंदिरगणी सीस हु ( इण) परि गुण गाविया ए ॥ २० ॥ कलश - इम नयर श्रीजालउर अरबुद सकल तीरथ वंदिया, सोलसई इगताल (१६४१ ) वरसइ माघ मासि आणंदिया । मुनि विमलरंग सुसीस लब्धई मन कल्लोलई । गुण भण्या, जे चित्त चोखइ हृदय राखइ तेह पामइ सुख घणा ॥ २१ ॥ पंचनदीसाधन गीत राग आशावरी दूहा - श्रीअकबर हरषित हुकम, करमचंद आणंद । पंचनदी साधन भणी, वीनवीयउ जिनचंद ॥ १ ॥ सुभ वेला सुभ वासरइ, सुभ सुकने सुभ वारि । मुलताणि संघवासरई, क्रमि जु करइ विहार ॥ २ ॥ + એમણેજ રચેલ સીરોહીસ્થ ખરતર પ્રાસાદ સુમતિસ્તવન ગાથા ૧૬ નો ઉપલબ્ધ છે.
SR No.022908
Book TitleYugpradhan Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherPaydhuni Mahavirswami Jain Derasar
Publication Year1962
Total Pages440
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy