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________________ ३०४ परिशिष्ट (७) अरविंद हरि जिम मोर पावस केतकी मधुकर मनइ, तिम सुगुरु दरिसण भविक वंछइ, अंगि आणंद अतिघनइ सीरोही रे आवा जउ गु.॥१०॥ संचरइ श्रावक साधु साथइ आदि जिणवर वंदिया, श्री सात जिणहर संति ताई वंदी पाप निकंदिया । संधणोद वाढिल उपर जगगुरु भविकजन अभिनंदिया, हम्मीर पुरवर आदि जिणहर संघसुखकर वंदिया ॥११॥ ढाल - सीरोढी पुरि पास जिन निरखी पालडी जिनवर पूजी मन हरखिया, "हणाद्रपुरि जिणहर एकमई भेटीयउ, आदि जिन पास नमि कर्ममल मेटीयउ ॥ १२ ॥ ढाल-धरणी रमणि उरि हार सार त्रिभुवन मन मोहइ, देउलवाडइ भुवन पंच नलणी सम सोहइ । नवर नाटारंभ थंभ तोरण अति चंग, विमल वसही नाभिनंद पूजउ मनिरंग ॥ १३ ॥ लूणग वसही बिंब चंग वंद्या नेमि नाह, भीमसाह वसही रिसह अरचिउ उछाह । मंडलक वसही पासदेव भेटिउ कल्पद्रुम, हुंबड वसही बिंबरंग पूज्या पुरुषोत्तम ॥१४॥ अचलगढइं वरराघविहार पूजिउ संतीसरा, युगवर कीरत रतन सूरि वंदिउ गुरु सुरतरा । चउमुख सह (?) सा तणइ प्रसादि वंद्या आदीसरा, कुंथुनाथ त्रीजइ भुवनि पण मिउ जगदीसरा ॥ १५॥ ओरीसइ सिरिवीर सामि मनरंगि जुहारउ, लहुया गुरुया बिंब सवे नमि दोहग डारिउ । खरतर श्रावक सकलसंघ मननइ उच्छाह, दान पुण्य पूजा करी ए ल्यइ ल(ख)मी लाह ॥१६॥
SR No.022908
Book TitleYugpradhan Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherPaydhuni Mahavirswami Jain Derasar
Publication Year1962
Total Pages440
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size33 MB
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