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________________ ६०० आपका पत्र मिला । आपके आर्डरकी मूर्तियोंका काम चालू है। बड़े महाराजको नई मूर्तियाँ देखके प्रसन्नता हुई और आपको महाराजसाहबने कहा कि क्या आपकी प्रेरणा कारण है? तो बड़े महाराजसाहबकी कल्पना सही है। गत साल आपके पास चेम्बुरमें आया और नया परिचय हुआ। हमेशा आपके पासमें और मेरे साथमें बैठनेका मौका मिला। आपने जैनमूर्ति शिल्पके बारेमें जो नई नई जानकारी दी, मस्तक ऊपर घूँघराले बाल बनाना, हाथ-पैर की अंगुलियाँ कलात्मक बनाना । गद्दीमें परिकर बनाना - फणोंकी विविधता जो जो आपने सुधारा करवाया वही दाखिल कर दिया है। इससे मूर्तियाँ बहुत ही अच्छी लगती हैं । मन्दिरोंमें, मूर्तियोंमें नवीनता और विविधता आयेगी और जैन समाजकी कला - सम्पत्ति बढ़ेगी। बड़े गुरु महाराजको कहना मूर्तिका अंगोपांग कैसे सुन्दरता कलात्मक होना चाहिए यह बतलाया, फोटोचित्रों द्वारा भी जो ज्ञान दिया ऐसा ज्ञान किसी मुनिराजने आज तक हमको नहीं दिया है। और हमारे साथ कभी इस विषयकी चर्चा भी नहीं की है। आप एक उत्साही और नई दृष्टिवाले कलाके मर्मज्ञ मुनिराज हैं। वास्ते आपने समय निकाला। मैंने भी यहाँ आकर वर्षोंसे चला आता ढांचा बदल दिया है। आपने जो जो सूचना दी, शिक्षा दी उसको ध्यानमें रखकर मैंने ४० वर्षोंकी पद्धति बदल दी है और मूर्तिके शिल्पमें सुन्दरता बढ़ी है । अभी तो आपने मूर्ति शिल्पमें जो नया आविष्कार शुरू करवाया उसे दूसरे जैन भाई देखकर उसको ही जलदी पसंद करते है और मेरे पर, कारीगरों पर आपने जो प्रेम, ममता दिखाई वैसी अन्यत्र देखने को नहीं मिली । आपको सहर्ष धन्यवाद है । - लि० नारायणलाल रामधन मूर्तिवाला पं० नारायणलाल रामधन मूर्तिवाला, रास्ता भिण्डान, जयपुर (रजस्थान ) दि. ३-४ -१६६८ श्री श्री १००८ श्री महाराजसाहब यशोविजयजी, बम्बई । आपकी ओरसे हमें मूर्तियोंका आर्डर मिला और आपकी हमने सेवा की, जिससे हमें जानकारी प्राप्त हुई कि आपको कला शास्त्रोक्त विद्याकी पूर्ण महान जानकारी हैं। हमें आपने कलाकी ओर जो आकर्षित कराया है जिससे हमें ज्ञान प्राप्त हुआ है और हम आपके आभारी हैं। हम आपसे यही निवेदन करते हैं कि हमें उच्चकोटिकी कलाकृतिमें शिक्षाप्रदान करते रहेंगे । आपको भगवान महान शक्ति प्रदान करें । ★ 4x algì ★ હિન્દીનું ગુજરાતી ભાષાંતર શ્રી શ્રી ૧૦૦૮ શ્રી પરમપૂજ્ય શ્રી યશોવિજયજી મહારાજ જોગ, જયપુરથી નારાયણલાલ રામધન મૂર્તિવાળાના જય જિનેન્દ્ર. આપનો પત્ર મળ્યો. આપના ઓર્ડરની મૂર્તિઓનું કામ ચાલુ છે, મોટા મહારાજ સાહેબને <+> <+> [εuu ] **<+> <+>
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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