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________________ 333333333333333333333333333333333333333333333333333333333338388 8888888888888888888888888888888888888888888 सिद्ध योगी तरीके आपणी समक्ष खडा थाय छ। जेनेतर ग्रन्थ पातंजलयोगदर्शन उपर टीका रची जैन यागप्रक्रियानुं समत्व बताववा साथे तेमांनी अपूर्णताओ दूर करवानुं तेमनुं साहस जोईए छीए त्यारे * तओश्रीनी सर्वागी प्रत्युत्पन्न मेघाने नतमस्तके भावांजलि अपाई जाय छ। ___ वेदान्त ग्रन्थो उपर टीका करवान खेडेलु साहस, ए एमणे दार्शनिक क्षेत्रे साधेली ज्ञानसिद्धिनो एक सबळ पुरावो छ। एमनुं जीवन-कवन जोतां ढूंकामा एक वस्तु फलित थाय छे के आध्यात्मिक प्रवीणता एज मनो अन्तश्वरप्राण हतो अने सद्धर्मतत्त्वप्रचार ए ज तेमनो वहिश्वर प्राण हतो। अहीं मारे सगर्व कहे, जोईए के, मारी अल्प जाण मुजव, कोई दिगम्बर के जैनेतर विद्वाने जैन श्वेताम्बर दार्शनिक ग्रन्थ उपर टीका--विवरण करवा शक्ति के उदारता बतावी होय, ते जाणवामां नथी। ज्यारे श्वेताम्वरोए केटलीये जैनेत्तर कृतिओ उपर अने दिगम्बर कृति उपर पण विविध टीकाओ रची पोतानी विशाळ दृष्टि अने उदारतानु ज्वलंत उदाहरण पूरुं पाड्युं छे त्यारे उदार कोण छे ने संकुचित कोण छे, तेनो निर्णय करवानुं वाचको उपर छोडु छु। वीजी एक विशिष्टता ए नोंधवी रही है के आज सुधी साहित्यक्षेत्रे संस्कृत--प्राकृत ग्रन्थोना गुजराती अनुवादो गद्य--पद्य द्वारा थया छे, पण एक गुजराती भाषानी पद्यरचनानी अर्थ जटिलताने समजाववा संस्कृत भाषामा टीका रचवी पडे ए गुजराती भाषाना पद्यमय क्षेत्रे एक अपूर्व ने नोंधपात्र घटना छ। उपाध्यायजीना 'द्रव्यगुण पर्याय रास' ग्रन्थ माट आवं वन्यु छ। अरे! गुजराती कृतिओने समजवा गुजराती अनुवादो पण लखाया छ । उपाध्यायजी भगवाननी कृतिओमां पण केटलीक कृतिओ विशिष्ट स्थान धरावे छ। एमाथी अहीयां सर्वोपयोगी कृति तरीके वे कृतिओनो उल्लेख करी शकाय : एक छे ज्ञानसार, अने बीजी छे अध्यात्मसार । आ कृतिओ संस्कारसाहित्यमां मूर्धन्य स्थान धरावे तेवी छ। आ कृतिओ जैन उपरांत जेनेतर समाजने पण अत्युपयोगी छ। आ कृतिओ विश्वने कल्याणनो साचो राह चींधे छे, जीवनने ॐ ऊर्ध्वगामी बनाववा माटेनी सुचारु प्रक्रिया रजू करे छ। खरेखर, वर्तमान युगनी प्रजा माटे आ अणमोल भेट छ। सहु कोई माटे ए सुवाच्य अने सुपच खोराक छ। ए जोतां भारपूर्वक कहेवानुं मन थाय * छे के लोकसमूहमां आ ग्रन्थनी वधुमां वधु प्रतिष्ठा थवी जोईए, अने आने सर्वमान्य अने सर्वग्राह्य करवा माटे 'गीता'नी जेम आना उपर भिन्न भिन्न पद्धति अने विविध दृष्टिकोणथी, सुंदर शैली अने & लोकभोग्य भाषामा अनुवादो, विवेचनो अने व्याख्याओ पण थवा जोईए अने एना प्रचारने व्यापक बनाववामां सहुए भागीदार बनवू जोईए। अणु-हाईड्रोजन अने कोबाल्ट बोम्बना आरे आवीने ऊभेला • विश्व माटे अध्यात्मवादना प्रचण्ड बळोने सत्वर जाग्रत करवा ज जोईए। अने ए माटे आध्यात्मिक सिद्धान्तोनो छूटथी वधुमां वधु प्रचार थवो जोईए। आवा सफल प्रयत्नोद्वारा ज मानवजातनुं अज्ञान * घटाडी शकाशे, आत्मवादने दबावी रहेलां भौतिकवादनां परिवळोने नाथी शकाशे अने फलतः • मानवचेतनानुं तेजोमय ऊर्धीकरण साधी शकाशे । अहीया प्रसंगोपात्त एक आंतरवेदना जणावं के आजना विद्वानो अने शिक्षित वर्ग परदेशी 8338333333888888883333338888888888883339333888383933438383843333334
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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