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________________ आन्दोलन के एक निष्ठावान कार्यकर्ता रहे, जिन्होंने 500 रुपये जुर्माना सहित 18 मास कैद की सजा काटी। उनका महात्मा भगवानदीन से भी निकट सम्पर्क रहा। भगवानदीन जी ने अपने प्रसिद्ध लेख 'राजनीति के मैदान में आओ' में भी उनका उल्लेख किया है। इटावा में आयोजित होने वाले जैन उत्सवों में भी स्वतंत्रता आन्दोलन के विषय को प्रमुखता से उठाया जाता था। भारतीय जैन परिषद् के एक अधिवेशन में लखनऊ निवासी अजितप्रसाद जैन ने प्रत्येक जैन से आह्वान किया कि उसे इस समय देश सेवा में पूरा भाग लेना चाहिए, क्योंकि यह आन्दोलन जैन धर्म के सिद्धान्तों से ही प्रेरित है। इस अधिवेशन में कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकृत किये गये। कार्यक्रम में स्वदेशी वस्त्र व्यवहार पर जोर दिया गया और जैन विद्यार्थियों से हिन्दी साहित्य में विशेषज्ञ होने का अनुरोध किया गया। अधिवेशन में बैरिस्टर चम्पतराय, रतनलाल जैन, ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद, कामताप्रसाद जैन के प्रभावशाली व्याख्यान हुए। जैन तत्व प्रकाशिनी सभा ने सभी से स्वदेशी अपनाने का अनुरोध किया। इटावा से निकलने वाले जैन मासिक पत्र 'सत्योदय' ने भी स्वतंत्रता आन्दोलन में भागीदारी की। ‘पटेल बिल' के मसले पर तो उसने जैनियों का भारी समर्थन देश को दिलाया। झाँसी के जैन समाज ने सभी जैन मंदिरों में स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना प्रारम्भ कर दिया। उस समय झाँसी जैन समाज के अग्रणीय समाजसेवियों में मुन्नूलाल जैन, नंदलाल जैन, परमानंद जैन, लाला भजनलाल जैन, चन्द्रभान किशोर जैन, जानकीप्रसाद जैन, सागरमल जैन, परसादीलाल जैन, मोहनलाल जैन, मनसुखदास जैन, बिहारीलाल जैन, शांतिप्रसाद जैन प्रमुख थे। उन्होंने किसी न किसी माध्यम से इस आन्दोलन में अपना योगदान दिया। सहारनपुर जिले में सन् 1920 में कांग्रेस की विधिवत् स्थापना हुई। लाला बारूमल जैन के पुत्र झुम्मनलाल जैन वकील कांग्रेस के प्रथम प्रधान चुने गये।। असहयोग आन्दोलन के तहत श्री जैन ने जनपद वासियों को कांग्रेस के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने 1920 में ही सदैव के लिए अपनी वकालत छोड़ दी। झुम्मनलाल जैन ने अपनी टोली के साथ अदालतों का बहिष्कार किया तथा कौमी अदालतों की स्थापना करायी। इस प्रकार की अदालतों में जनता द्वारा श्री जैन को ही न्यायाधीश चुना जाता था। उनके पेशकार के रूप में मुंशी जहूरअहमद काम करते थे। सहारनपुर में जैन समाज को प्रेरित करके उन्होंने चर्खे का प्रचार, स्वदेशी वस्तुओं को ग्रहण कराना और शराब की दुकानों पर धरना देना आदि कार्य कराये। सन् 1921 में मोहंड के जंगलों में वाइसराय ने शिकार खेलने का कार्यक्रम असहयोग आन्दोलन और जैन समाज की भूमिका :: 59
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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