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________________ विरुद्ध जनता की भावनाएं भड़क उठी थी। अलीगढ़ जिले में भी जनता रौलट एक्ट का विरोध करने में पीछे नहीं रही। जैन समाज ने भी अपना विरोध प्रकट किया। हाथरस (अलीगढ़) से प्रकाशित जैन पत्र ‘जैन मार्तण्ड' ने लगातार अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध लिखना प्रारम्भ कर दिया। फलस्वरूप सरकार ने उसे चेतावनी दी कि वह आइन्दा ऐसे समाचार न छापे। प्रमुख समाचार पत्र 'आज' में समाचार छपा 'हाथरस से प्रकाशित होने वाले हिंदी मासिक पत्र के सम्पादक श्री मिश्रीलाल सोगानी और प्रिंटर बाबूलाल जैन को दिनांक 18 अप्रैल को ज्वाइंट मजिस्ट्रेट साहब ने तहसील चपरासी द्वारा स्थानीय पंचघर पर बुलाकर हुक्म सुनाया कि 'जैन मार्तण्ड' में फरवरी सन् 1921 (माघ मास) में जो नज़म (कविता) प्रकाशित हुई है, उसको गवर्नमेंट ने राज्य नियम के विरुद्ध समझा है। इसलिए इलाहाबाद से हुक्म आया है कि 'जैन मार्तण्ड' को इत्तला दी जाये कि वह आइन्दा ऐसे मजमून प्रकाशित न करे, वरना जमानत तलब की जायेगी। सरकार की चेतावनी के बाद भी जैन मार्तण्ड के सहायक संपादक सुदर्शन जैन ने देशभक्ति से ओत-प्रोत रचनायें छापने का अभियान जारी रखा। जैनेन्द्र कुमार का जन्म भी अलीगढ़ में हुआ था। श्री जैनेन्द्र के परिवार ने असहयोग आन्दोलन में सक्रिय योगदान दिया। उस समय जैनेन्द्र जी अध्ययन कर रहे थे। अतः असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण उनका अध्ययनक्रम अवरुद्ध हो गया। उन्होंने सन् 1923 के नागपुर सत्याग्रह में भी भाग लिया। सन् 1918 में जब गाँधी जी की गिरफ्तारी होने की वजह से दिल्ली में गोली चली, उस समय इत्तफाक से जैनेन्द्र जी दिल्ली टाऊन हॉल पर मौजूद थे। उस समय उनकी उम्र मात्र चौदह बरस थी, परन्तु वह गोलीकांड को ऐसे देखते रहे, मानों उनके लिए वह एक मामूली खेल था। इस घटना का उनके जीवन पर बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने सन् 1920 में जब वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के विद्यार्थी थे, एक पत्र अपने मामा को लिखा कि वह कॉलेज छोड़कर आन्दोलन में हिस्सा लेना चाहते हैं। जिसके जवाब में उनके मामा ने लिखा कि होना तो यह चाहिये था कि तुम मुझे खबर देते कि तुमने कॉलेज छोड़ दिया है, न कि यह कि तुम मुझसे कॉलेज छोड़ने की इजाजत चाह रहे हो। जैनेन्द्र जी कॉलेज छोड़कर आन्दोलन में कूद पड़े। उनका सारा परिवार इस देश यज्ञ में सहयोगी बना। उनकी माता रामदेवी बाई जैन ने भी असहयोग आन्दोलन में पूर्ण योगदान दिया। सन् 1918 में रामदेवी बाई ने अलीगढ़ से दिल्ली पहुंचकर पहाड़ी धीरज में एक महिला आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम की लड़कियों ने दिल्ली में कांग्रेस के प्रत्येक आन्दोलन में भाग लिया। जितनी सभाएं कांग्रेस की होती थी, उनमें आश्रम की सभी लड़कियों को जाने की छुट्टी थी। रामदेवी बाई उनको 50 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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