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________________ मुख्य धन यही धन माना जाता था । इस देश के निवासियों का प्रधान भोजन दूध, दही और घी था। गत महायुद्ध और अकाल में लाखों पशु मर गये। 1939 से 1944 तक इस देश में पशुओं की संख्या 30 करोड़ थी, परन्तु अब 15 करोड़ ही रह गई है। परिणाम यह हुआ कि पशुओं का मूल्य चौगुना-पंचगुना हो गया। उनका कहना था कि पशु रक्षा का प्रश्न उतना धार्मिक नहीं जितना आर्थिक है और जब इसे आर्थिक सिद्धान्तों द्वारा हल किया जायेगा, तभी आशातीत सफलता प्राप्त होगी। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उन्होंने 24, 25 और 26 दिसम्बर 1945 को आगरा के रामलीला मैदान में 'अखिल भारतीय पशु-रक्षा सम्मेलन' का विशाल आयोजन कराया । इस सम्मेलन में स्वदेशी प्रदर्शनी, चर्मरहित वस्तु- प्रदर्शनी, पशु और कृषि प्रदर्शनी का भव्य आयोजन किया गया। पूरे भारत में अपने तरह का यह अनूठा तथा प्रथम सम्मेलन था, जिसने भारतवासियों के मन में अपने पशु धन के प्रति आकर्षण पैदा किया। इस सम्मेलन की सफलता हेतु महात्मा गाँधी, महामना मालवीय जी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, डॉ. सम्पूर्णानन्द, के. एम. मुंशी आदि राष्ट्रीय नेताओं ने अपने शुभकामना संदेश भेजे, जो कार्यक्रम में पढ़कर सुनाये गये । अखिल भारतीय पशु-रक्षा सम्मेलन का उद्घाटन 23 दिसम्बर, 1945 को जानकी देवी बजाज (धर्मपत्नी सेठ जमनालाल बजाज) अध्यक्षा गो-सेवा-संघ, वर्धा किया। सम्मेलन में लगी प्रदर्शनियों को देखकर भारत के भिन्न-भिन्न स्थानों से पधारे लगभग 5000 प्रतिनिधि स्वयंसेवकों ने अपने पशुधन को बचाने का संकल्प लिया। सम्मेलन में कई शहरों और ग्रामों से पशु प्रदर्शनी में अनेक अच्छे पशु भी आये थे। अच्छी नस्लों के पशुओं को सम्मेलन के संयोजक सेठ अचलसिंह ने इनाम भी दिये। स्वदेशी और चर्म रहित प्रदर्शनी भी बहुत प्रेरणात्मक रही। अखिल भारतीय पशु-रक्षा सम्मेलन में पधारे 250 से अधिक गोशाला संचालकों और पशु-रक्षा प्रेमियों से सेठ जी ने देश के आर्थिक विकास में सहयोगी बनने का आह्वान किया। इस सम्मेलन में कई उपयोगी प्रस्ताव पास किये गये । जो कार्यान्वित करने के लिए भारत-सचिव, भारत सरकार, प्रांतीय सरकारों और देशी रजवाड़ों को भेजे गये। इसी अवसर पर 'पशु-सेवक' नामक मासिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। यह पत्र पशु-रक्षा, नस्ल सुधार, सस्ते एवं शुद्ध दूध की आपूर्ति, कृषि सुधार आदि का प्रचार करने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ ।" उत्तर प्रदेश जैन समाज के उद्योगों और व्यापार का विस्तृत विवरण बम्बई से प्रकाशित श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन डायरेक्टरी में मिलता है । यह डायरेक्टरी श्री माणिकचन्द्र जी 'जे.पी.' के परिवार ने प्रकाशित करायी थी । इस डायरेक्टरी का अवलोकन करने से पता चलता है कि तत्कालीन संयुक्त प्रान्त के 17-18 जिलों में 24 : : भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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