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________________ 1938 में नैनीताल जाकर सेठ जी ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन उद्योग मंत्री डॉ. कैलाशनाथ काटजू से मुलाकात की। उन्होंने मंत्री जी को बताया कि प्रदेश में बेरोजगारी बहुत अधिक है, अतः नये-नये उद्योग स्थापित करने बहुत जरूरी हैं। उत्तर में डॉ. काटजू ने कहा- 'हमें अपने प्रदेश में उद्योग और कला कौशल की उन्नति के लिए पूर्ण प्रयत्न करना चाहिए। सरकार इस कार्य में सहायता देने को तैयार है। जो व्यक्ति किसी प्रकार का उद्योग चलाना चाहें, उन्हें कम सूद पर कर्ज मिल सकेगा । जिन्हें मशीन तथा औजारों के लिए धन की आवश्यकता होगी, उन्हें सरकार आर्थिक सहायता देगी। पश्चिमी जिलों में हाइड्रो इलैक्ट्रिक करेंट सस्ते भाव में दिया जायेगा। जिस वस्तु को अपने प्रान्त में आने से रोकना चाहेंगे, उस पर टैक्स लगाया जायेगा ।' सेठ अचल सिंह सेठ अचलसिंह को उद्योग मंत्री की इन बातों से विशेष प्रसन्नता हुई और उन्होंने आगरा लौटकर इन विचारों को हिन्दी व अंग्रेजी के अखबारों में प्रकाशित कराया। इन समाचारों को पढ़कर श्री जैन के आवास पर काफी संख्या में नागरिक पहुँचने लगे । सेठ जी ने लोगों की जिज्ञासाओं को देखते हुए यह विचार किया कि अगर सरकार सुविधायें उपलब्ध कराये, तो हमारे प्रदेश में औद्योगिकरण हो सकता है और बेरोजगारी को समाप्त किया जा सकता है । सेठ अचलसिंह ने यह विचार करके जल्द ही एक 'संयुक्त प्रान्तीय औद्योगिक सम्मेलन' कराने की योजना बनाई। उनके प्रयासों से 18 नवम्बर 1938 को लखनऊ की औद्योगिक प्रदर्शनी के मैदान में यह सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में पूरे प्रदेश के उन प्रमुख कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की, जो उद्योग लगाने में इच्छुक थे। विशाल जनसमूह की उपस्थिति में सम्मेलन का कार्य प्रारम्भ हुआ । बहुत सज्जनों ने अपने-अपने सुझावों से सम्मेलन को मार्गदर्शन दिया । सम्मेलन में सेठ अचलसिंह ने अपने सारगर्भित भाषण में कहा कि हमारे बहुत भाई उद्योग-धन्धों (दस्तकारी) की स्थापना के लिए आर्थिक सहायता चाहते हैं। उन्हें सहायता दिलाने के लिए एक संस्था होनी चाहिए। यह संस्था भारत सरकार से रुपये दिलाने के साथ ही उद्योग-धंधों को लगाने के लिए पूरी योजना भी बतायें, जिससे हमारे नागरिक सुविधा पूर्वक उद्योग धंधे लगा सकें । सम्मेलन में कई महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पास हुए, जिनका प्रभाव वर्तमान उद्योग नीति में भी दृष्टिगोचर होता है । सेठ अचलसिंह देश के आर्थिक विकास में पशुओं की भूमिका को भी महत्त्वपूर्ण मानते थे। अक्टूबर 1944 में उन्होंने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा था- मैं अपने देशवासियों का ध्यान पशु-धन की ओर ले जाना चाहता हूँ । भारत का उत्तरप्रदेश के जैन समाज ... :: 23
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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