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________________ सरकारी उपाधियों, सरकारी न्यायालयों, कौंसिलों, सरकारी विद्यालयों और विदेशी वस्त्रों का पूर्णतः बहिष्कार करना चाहिए। विदेशी वस्त्रों में चर्बी लगायी जाती है, जिसको छूना भी हमारे लिए बड़ा भारी पातक है।5।। ___'वीर' ने कांग्रेस के स्वदेशी कार्यक्रम के प्रचार में भी हाथ बँटाया। उसने लिखा-कांग्रेस कमेटी ने स्वदेशी प्रचार के लिए महात्मा गाँधी का प्रोग्राम स्वीकार किया है और उनके अनुसार आगामी मार्च से विदेशी कपड़े का बहिष्कार, खद्दर का प्रचार और शराब की पिकेटिंग शुरू होगी। 10 मार्च (इतवार) को देशभर में स्वराज्य सभाएं होंगी, जिनमें सर्वदल सम्मेलन के निर्णय को स्वीकार करने की घोषणा होगी। इसके बाद दूसरे इतवार (तारीख 17 मार्च) को और फिर हर महीने के पहले इतवार को विदेशी कपड़े के बहिष्कार और खद्दर के प्रचार का उद्योग होगा। उपरान्त तीसरे इतवार (तारीख 24 मार्च) को और लगातार हर महीने के दूसरे इतवार को मद्यपान निषेध के लिए प्रचार कार्य होगा और फिर मार्च के अंतिम इतवार को अखाड़ों में कुश्तियाँ व अन्य कार्यक्रम होंगे। इस प्रकार एक व्यवस्थित ढंग से देश में कांग्रेस के उक्त प्रोग्राम को सफल बनाने का उद्योग किया जायेगा। यदि देश के नौजवानों ने सच्चे दिल से नेताओं का साथ दिया, तो एक दफे देश में पवित्र खद्दर ही खद्दर दिखाई देने लगेगा और मद्यपान के निषेध से देश में संयम की मात्रा भी बढ़ेगी। जैन परिषद् ने पहले ही विदेशी कपड़े के बहिष्कार का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। हमें विश्वास है कि हमारे जैनी भाई इस अपवित्र कपड़े को कतई नहीं छुयेंगे और जिस मद्य से वे घृणा करते हैं, उसे अवश्य दूसरों से छुड़ाने में अग्रसर होंगे। आगरा में पंडित मोतीलाल नेहरू ने जैन समाज को अपना जो संदेश दिया था, उसे वीर ने प्रकाशित किया। पत्र ने लिखा-आगरे में जयंती उत्सव के समय मोतीलाल नेहरू ने जो शब्द संदेश रूप में कहे थे, उन पर प्रत्येक जैनी को लक्ष्य देना आवश्यक है। नेहरू जी ने दो बातें खास तौर पर कहीं थी। एक-जैनी भाई अपने समाज के अन्दर और बाहर वालों के साथ भ्रातृ-भाव पैदा करें और दूसरी अहिंसा सिद्धान्त के महत्व को सर्वोच्च स्थान देनेवाले जैनी भाई अपवित्र विदेशी वस्त्रों का पूर्णतः त्याग करें।27 वीर ने जैन समाज में इन बातों का प्रचार किया। पत्र में ‘देश में विविध हलचल' शीर्षक से समाचार प्रकाशित किये जाते थे। इनके द्वारा भारतीय नागरिकों को देश के आन्दोलन में भाग लेने को उत्साहित किया जाता था। पत्र ने भारतीय व अंग्रेज कैदियों में सरकार द्वारा किये जा रहे भेदभाव की सदैव आलोचना की। इस संदर्भ में पत्र में श्रीयुत् जितेन्द्र दास व बौद्ध साधु श्री विजया के बलिदान को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। पत्र ने लिखा-जितेन्द्रदास ने 63 दिन भूखे रहकर 13 सितम्बर को प्राण त्याग किये। इस बलिदान ने समस्त भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैन पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका :: 167
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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