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________________ १ नवम्बर सन् १९२४ ब्रह्मचारी जी ने बहुत निर्माणका समय तक इसका स्वयं सम्पादन किया। उनके द्वारा लिखे गये श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् का सम्पादकीय वक्तव्य पाक्षिक पत्र और लेख मार्मिक और उच्च कोटि के होते थे। ब्रह्मचारी जी सफर में हों, तूफानी दौरे में हों, रोग शैया पर हों अथवा सभा में हों, सदैव नियमित रूप से 'वीर' में लिखते रहे। उनका आदेश रहता था कि 'वीर' के प्रकाशन में देरी न हो। शाश से स्वतत्राता आन्दोलन में 'वीर' ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। प्रत्येक वीर का पुराना अंक आन्दोलन से जैन समाज को जोड़ने में 'वीर' का प्रमुख योगदान रहा। इस पत्र के प्रत्येक अंक में देश से जुड़े आन्दोलनों की चर्चा होती थी। 'वीर' का एक लेख देखियेः शीर्षक-'असहयोग और जैन धर्म दो नहीं हैं। इसके अंतर्गत पत्र ने लिखा-असहयोग देखने में तो राजनैतिक आन्दोलन है, किन्तु वास्तव में यह विशुद्ध धार्मिक अथवा आध्यात्मिक आन्दोलन है। भारत में राजनीति धर्म का अंग हुआ करती है। अतएव असहयोग धर्म होते हुए भी आध्यात्मिक स्वतंत्रता के साथ ही साथ राजनैतिक स्वतंत्रता दिलाने का भी अमोघ अस्त्र है। वर्तमान सरकार की भारत पर राज्य करने की जो नीति है, वह किसी से छिपी नहीं है, अर्थात यह सरकार बनिया सरकार है। भारत के धन से इंग्लैण्ड वासियों का पेट भरना ही इस सरकार का मुख्य ध्येय है। इसको जहाँ ज्ञान ध्येय में बाधा की तनिक भी शंका हुई कि इसने जलियाँवाला बाग जैसे निन्दनीय कार्य किये। अतः ऐसी प्रणाली को दूर करने के लिए राष्ट्र हमारे लिये जो कार्य निश्चित करे, उसे पूर्ण करना हमारा कर्तव्य हैं। हमें अपना धर्म समझकर पगायक गंभूषण याचारी शीतलप्रसादजी श्रीयुत कामताप्रसादजी 166 :: भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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