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________________ आत्मकथ्य "मैं वहाँ (श्रवणबेलगोल जैन तीर्थ) एक महान भारतीय विचारधारा को विनयांजलि देने गयी थी। जैन विचारकों द्वारा प्रवाहित इस विचारधारा ने हमारे इतिहास पर और हमारी संस्कृति पर, सदाचार की गहरी छाप छोड़ी है। इतना ही नहीं, इस चिन्तन ने देश के स्वतन्त्रता संग्राम को भी प्रभावित किया है और हमें नीति के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी है। महात्मा गाँधी ने भी जैन तीर्थंकरों द्वारा बताये गये अहिंसा और अपरिग्रह के मार्ग को अपनी साधना का आधार बनाया था। ये वाक्य भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने लोकसभा में उन विपक्षी सांसदों को सम्बोधित करते हुए कहे थे, जो प्रधानमन्त्री के तौर पर उनके श्रवणबेलगोल कर्नाटक स्थित जैन महोत्सव में सम्मिलित होने की आलोचना कर रहे थे। वास्तव में जैन धर्म ने प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। 'संस्कृति के चार अध्याय' में रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है - जैन धर्म बहुत अधिक प्राचीन है, यह उतना ही पुराना है, जितना वैदिक धर्म। जैन धर्म के तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा। जैन धर्म की दो बड़ी विशेषताएं अहिंसा और तप हैं। इसलिए, यह अनुमान तर्क सम्मत है कि अहिंसा और तप की परम्परा प्राग्वैदिक थी और उसी का विकास जैन धर्म में हुआ। भगवान महावीर ई.पू. छठी शताब्दी में हुए और उन्होंने जैन मार्ग का जोरदार प्रवर्तन किया। इससे उस मार्ग के प्रणेता वे ही समझे जाने लगे, किन्तु जैन धर्म में चौबीस तीर्थकर हुए और महावीर वर्धमान चौबीसवें तीर्थंकर थे। उनसे पूर्व तेईस तीर्थंकर और हुए थे। तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे, जो ऐतिहासिक पुरुष हैं और जिनका समय महावीर और बुद्ध दोनों से कोई 250 वर्ष पहले पड़ता है। जैन धर्म का अहिंसावाद वेदों से निकला है, इसके पीछे साक्ष्य यह है कि ऋषभदेव और अरिष्टनेमि जैन मार्ग के इन दो प्रवर्तकों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव हैं। उनकी कथा विष्णु पुराण और भागवत् पुराण में भी आती है, जहाँ उन्हें महायोगी, योगेश्वर और योग तथा तप मार्ग का प्रवर्तक कहा गया है। इन दोनों पुराणों का यह भी कहना है कि दशावतार के पूर्व आत्मकथ्य::9
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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