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________________ आशीर्वचन अहिंसा जैन-दर्शन की आधारशिला है। प्रत्येक जैन श्रावक एवं साधु की दिनचर्या अहिंसा व्रत के पालन पर केन्द्रित रहती है। जहाँ साधु अहिंसा महाव्रत का पालन करते हैं वहीं श्रावक अहिंसा अणुव्रत का पालन करता है। जैन शास्त्रों में हिंसा के चार प्रकार बताये गये हैं- संकल्पी हिंसा (संकल्पपूर्वक किसी प्राणी की हिंसा करना), आरम्भी हिंसा (जीवन यापन एवं दैनन्दिन कार्यों में होनेवाली हिंसा), उद्योगी हिंसा (उद्योग, व्यापार आदि में होनेवाली हिंसा), विरोधी हिंसा (धर्म, समाज एवं राष्ट्र की रक्षा हेतु विरोधी/आततायी के प्रतिकार में होनेवाली हिंसा।) जैन श्रावक संकल्पी हिंसा का तो पूर्णतः त्यागी होता है किन्तु आरम्भी, उद्योगी एवं विराधी हिंसा का यथाशक्ति त्याग करता है क्योंकि गृहस्थ के रूप में इनका पूर्णतः त्याग शक्य नहीं है। साथ ही धर्म, समाज एवं राष्ट्र के हितों के विपरीत कार्य करनेवाले, भारत को परतंत्र कर उसकी अस्मिता को नुकसान पहुंचाने वाले का प्रतिकार करना प्रत्येक श्रावक का कर्तव्य है। विदेशी शासकों/आक्रान्ताओं का प्रतिकार न करना अहिंसा नहीं कायरता होगी। जैन श्रावकों ने अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए जहाँ राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक उन्नयन एवं राजनैतिक चेतना जागृत करने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया वहीं आजादी के संघर्ष के विभिन्न चरणों असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन में पूर्ण सक्रियता से सहभागिता दी। कुछ समाज बंधुओं ने अग्रिम पंक्ति में आकर संघर्ष किया, जेल गये, शहीद हुए तो कुछ परदे के पीछे रहकर संसाधनों को जुटाने, संरक्षण देने एवं संपर्क की श्रृंखला बनाते रहे। जैन लेखकों, पत्र-पत्रिकाओं एवं सामाजिक नेतृत्व ने आजादी के आंदोलन को बढ़ाने, विदेशियों के प्रति घृणा का वातावरण बनाने, भारत की एकता एवं अखंडता को मजबूत कर राष्ट्रीय स्वाभिमान को जागृत करने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया, किंतु सम्यक् अभिलेखीकरण एवं विश्लेषण न हो पाने के कारण यह ऐतिहासिक योगदान इतिहास की बहुप्रचलित पुस्तकों में स्थान न पा सका। बहुत से तथ्य केवल अभिलेखागारों में ही संरक्षित बने रहते यदि अमित जी अपने पी-एच.डी. शोध हेतु 'भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तरप्रदेश जैन समाज का योगदान' विषय का चयन न करते। ____ मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि श्री अमित जी का शोधप्रबंध सुसंपादित रूप में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो रहा है। इस महत्वपूर्ण कृति के सृजन, संपादन एवं प्रकाशन हेतु श्री अमित जैन एवं भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली के सभी पदाधिकारियों को मेरा मंगल शुभाशीष । आचार्य ज्ञानसागर नयी दिल्ली, 28 फरवरी 2014
SR No.022866
Book TitleBhartiya Swatantrata Andolan Me Uttar Pradesh Jain Samaj Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmit Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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