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________________ I विलक्षण रस का अनुभव करे जिससे विषय - सुख, विष रूप दुःखद लगे और उनके त्यागने के तीव्र उत्कण्ठा जगे । क्योंकि जो क्रिया जिस लक्ष्य से की जाती है, वह उसी लक्ष्य की अंग होती है । मिथ्यात्वी की सब क्रिया मिथ्यात्व का पोषण करने वाली होती है । * आमुख' (जीव- अजीव तत्त्व पुस्तक से उद्धृत भूमिका) - डॉ० धर्मचन्द जैन 1 पं. श्री कन्हैयालालजी लोढ़ा जैन आगम एवं कर्मसिद्धान्त के पारम्परिक विद्वान् होने के साथ एक प्रतिभासम्पन्न तत्त्व-चिन्तक, अध्यात्म-साधक, नये अर्थों के अन्वेषक एवं प्रज्ञासम्पन्न पुरुष हैं। उनके जीवन में राग-द्वेष का निवारण करने की बात ही प्रमुख रहती है । धर्म को भी वे उसी दृष्टि से देखते है । धर्म का फल हैवीतरागता, शान्ति, मुक्ति एवं प्रेम । इस धर्म को जीवन में अपनाने के साथ वे कामना, ममता एवं अहंता के त्यागपूर्वक दुःख से मुक्त होने की प्रेरणा करते हैं । बचपन से आप सत्य के अन्वेषक एवं पोषक रहे हैं । अपनी जिज्ञासावृत्ति के कारण आपने गणित, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, विज्ञान आदि विविध विषयों का रुचिपूर्वक गहन अध्ययन किया है । अभी भी आप बी. बी. सी. एवं वायस ऑफ अमेरिका के ज्ञान विज्ञान से सम्बद्ध समाचार नियमित रूप से सुनते हैं । आधुनिक युग में विज्ञान के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है । आगम में कहे गए तथ्यों का परीक्षण भी वे विज्ञान के आधार पर करने लगे हैं। यही नहीं, युवा पीढ़ी का आगमों के प्रति आकर्षण समाप्तप्रायः हो गया है। धर्म की अपेक्षा उनकी श्रद्धा वैज्ञानिक सुख-सुविधाओं की ओर बढ़ने लगी है । ऐसी स्थिति में आगम को विज्ञान के प्रकाश में देखना अत्यन्त आवश्यक है । श्री लोढ़ा सा. ने इस दिशा में प्रयास कर 'विज्ञान एवं मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में धर्म' नाम से एक पुस्तक भी लिखी, जिसकी पाण्डुलिपि पुरस्कृत हुई, किन्तु वह अप्रकाशित रूप में ही लुप्त हो गई। उसी पुस्तक के एक अंश रूप में यह पुस्तक है- जीव- अजीव तत्त्व। 1 इस पुस्तक में जैन आगमों में निरूपित जीव एवं अजीव द्रव्यों के स्वरूप को विज्ञान के आलोक में प्रस्तुत किया गया है । जीवाभिगम, प्रज्ञापना, स्थानांग आदि सूत्रों में जीव एवं अजीव का विस्तृत निरूपण है। जैन दर्शन में मुक्ति प्राप्त करने के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र का आराधन अनिवार्य है और जीव- अजीव तत्त्व [19]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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