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________________ जिस वेदनीय कर्म के उदय से जीव सुख और दुःख इन दो प्रकार की अवस्थाओं का अनुभव करता है, उसी कर्म के क्षय से आत्मस्थ अनन्त सुख उत्पन्न होता है। प्रस्तुत गाथा में वेदनीय कर्म के उदय से सुख-दुःख का अनुभव होना ही कहा है- बाह्य सामग्री की प्राप्ति होना नहीं कहा है। सादस्स गदियाणुवादेण जहण्णमंतरमंतोमुहुत्तं उक्कसंपि अंतोमुहुत्तं च वा असादस्स जहण्णमंतरमेगसमाओ, उक्कस्सं छम्मासा । मणुसगदीए असादस्स उदीरणंतरं जहण्णेण एगसमओ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं (धवल पुस्तक 15, पृ. 68/6) गति के अनुवाद से सातावेदनीय की उदीरणा का अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त ही है । असाता वेदनीय का उदीरणा काल जघन्य एक समय उत्कृष्ट 6 मास है । मनुष्य गति में असाता की उदीरणा का अन्तर जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से अंतमुहूर्त प्रमाण है । विशेष जानकारी के लिए लेखक की पूर्व प्रकाशित पुस्तक 'बन्ध तत्त्व' के वेदनीय कर्म अध्याय में निम्नांकित प्रकरण पठनीय हैं- साता - असातावेदनीय कर्म-उपार्जन के हेतु; कर्म का फल : एक प्राकृतिक विधान; साता एवं असातावेदनीय का फल; कर्मोदय से बाह्य निमित्त की प्राप्ति नहीं; वेदनीय कर्म हानिकारक नहीं । मोहनीय कर्म जो मोहित करे, मूर्च्छित करे, हित-अहित की पहचान न होने दे वह मोहनीय कर्म है। इसका स्वभाव मद्य के समान है। जैसे मद्य (शराब) के नशे में मनुष्य को अपने हिताहित का भान नहीं रहता है उसी प्रकार मोहनीय कर्म के उदय से जीव को अपने स्वरूप एवं हित-अहित, हेय - उपादेय को परखने का बोध नहीं रहता है। वह स्वभाव को भूल जाता है और विभावग्रस्त हो जाता है । जितने भी विकार या दोष हैं, पाप हैं इनका मूल कारण मोहनीय कर्म ही है। मोह के कारण ही जीव स्वभाव के विपरीत आचरण करता है । मोहग्रस्त व्यक्ति के लिए मोह को समझना उतनी ही टेढ़ी खीर है जितनी टेढ़ी खीर बेहोश व्यक्ति द्वारा यह समझ सकना कि वह बेहोश है। किसी को बेहोशी का ज्ञान होना होश में आने का सूचक है । जितना - जितना व्यक्ति होश में आता जाता है, उतना-उतना उसे अपनी बेहोशी का ज्ञान होता जाता है। इसी प्रकार मोह घटने पर मोह की यथार्थता का ज्ञान होना संभव है । जितना - जितना मोह घटता जाता है, जैतत्त्व सा [180]
SR No.022864
Book TitleJain Tattva Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2015
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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