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________________ ८० वस्तु के अनेक धर्मों का जो समवन्य करता है, उसी तथ्य का नाम अनेकान्तवाद है । अनेकान्तवाद प्रत्येक व्यक्ति को वस्तु के सभी धर्मों को समझ लेने की बात कहता है। अनेकान्तवाद के इस सन्देश से भारत के दार्शनिकों ने बहुत कम लाभ उठाया है। इसी कारण विश्व में विविध धर्मा', दर्शनों, मतों, पन्थों और सम्प्रदायों में विवाद चल रहे हैं। एक धर्म दूसरे धर्म को असत्य और मिथ्या कहता है, वह अपने द्वारा मान हुए धर्म को ही सम्पूर्ण सत्य मान बैठा है । यदि अनेकान्तवाद को अपना लिया जाय तो परिवार, समाज और राष्ट्र में शान्ति की स्थापना हो मकती है । अनेकान्तवाद में कभी विचारों का दुराग्रह नहीं होता। वह शान्ति से सत्र की सुनता है और जहां कहीं भी उसे सत्यांश मिलता है वहीं से उसे ग्रहण कर लेता है । हठवाद और अनेकान्तवाद का दिन रात का सा विरोध है। स्याद्वाद के इस अमर सिद्धान्त को दार्शनिक संसार ने बड़ा मान दिया है। राष्ट्रपिता गान्धी जैसे युगपुरुषों ने भी इस की महान प्रशंसा की है । पाश्चात्य विद्वान डाक्टर थामस ने भी कहा है कि अनेकान्तवाद का सिद्धान्त बड़ा ही गंभीर है, यह वस्तु की भिन्न-भिन्न स्थितियों पर अच्छा प्रकाश डालता कर्मवाद भगवान महावीर के सिद्धान्तों में कर्मवाद का अपना एक रहस्यपूर्ण स्थान है। कर्मवाद के मर्म को समझे बिना जैनधर्म और जैन संस्कृति के मूल हार्द का ज्ञान नहीं हो सकता । जैन धर्म का भव्य प्रासाद कर्मवाद की गहरी और मजबूत नींब पर ही टिका हुआ है । कर्मवाद की धारणा है कि जीब स्वय
SR No.022854
Book TitleDipmala Aur Bhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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