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________________ ४१ कि लोग व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता की ओर ध्यान नहीं देते। उन्हें कौन समझाए कि व्यक्तिगत जीवन को पावन बनाये बिना सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन का उत्थान संभव नहीं है। व्यक्तियों से परिवार बनता है और परिवारों से समाज की रचना होती है। नगरों से प्रान्त और प्रान्तों से राष्ट्र का प्रादुर्भाव होता है। इस प्रकार व्यक्ति ही राष्ट्र का मूल है, राष्ट्र का जीवन है। राष्ट्र की उन्नति और अवनति का आधार व्यक्ति है। व्यक्ति यदि सुशील है, सदाचारी है, कत्तेव्यपरायण है तो राष्ट्र पर उसका प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता । व्यक्ति राष्ट्र का एक अंग है, अतएव व्यक्ति का सुधार राष्ट्र के एक अंग का सुधार है । और व्यक्ति का बिगाड़ राष्ट्र के एक अंग का बिगाड़ है । मगर यह भी स्मरण रखना चाहिए कि राष्ट्र का एक अंग समूचे राष्ट्र से अभिन्न है, अतएव उसके उत्थान और पतन का प्रभाव समूचे राष्ट्र पर पड़े बिना नहीं रहता। दीपमाला पर्व द्रव्य-प्रकाश के माध्यम से व्यक्ति को भावप्रकाश प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है । जब व्यक्ति अपने आपको भाव-आलोक से आलोकित कर लेता है तो उसके आन्तरिक विकार दूर हो जाते हैं और वह सच्चा एवं पवित्र मानव बन जाता है। उसकी पवित्रता परिवारों को ऊंचा उठाती है और परिवारों की ऊँचाई से समाज ऊँचा उठ जाता है। समाज की ऊँचाई राष्ट्र के उत्थान की आधारशिला बनकर अन्ततः समष्टिगत जीवन को उन्नत और पवित्र बना देती है। इस विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि दीपमाला पर्व आध्यात्मिक पर्व होने के साथ-साथ एक राष्टीय पर्व भी है, क्योंकि उसके आलोक में समग्र राष्ट्र का उत्थान निहित है,
SR No.022854
Book TitleDipmala Aur Bhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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