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________________ 56 आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य “कोउ तो करें किलोल भामिनी सों रीझिरीझि, या ही यों सनेह करै खाय अंग में । कोउ तो लहै अनंद लक्ष कोटि बोरि बोरि, लक्ष लक्ष मान करे लच्छि की तरंग में । कोउ महाशूरवीर कोटिक गुमान करै, मो समान दूसरो न देखो कोऊ जग में। कहें कहा ‘भैया' कछु कहिवे की बात नाहिं, सब जग देखियतु राग-रस-रंग में । " भगवतीदास ने 'चेतन कर्म चरित्र' काव्य में वीर रस की सुन्दर धारा बहाई है। इसमें अपभ्रंश के शब्द भी आ गये हैं। यह एक प्रतीकात्मक काव्य है । कवि गाते हैं “वज्जहिं रणतूटे, दलबल छूटे, चेतन गुण गावंत । सूरा तन जग्गो, कोऊ न भग्गो, अरि दल पे धावंत || " 44. 'उनका 'ब्रह्मविलास' ओज से भरा हुआ सिन्दूर घट है। बनारसी का शान्त रस शांति की गोद में पनपा, जबकि भैया का वीरता के प्रभंजन में जनमा, पला और पुष्ट हुआ। अध्यात्म और भक्ति के क्षेत्र में वीर रस का प्रयोग भैया की अपनी विशेषता है।” सत्य ही भैया के एक-एक पद में ओज के साथ मधुरता का रसपूर्ण घोल संमिश्रित रहा है। 'परदेशी' के पद का माधुर्य ऐसा ही है, आध्यात्मिकता के अन्तर्गत माधुर्य पूर्ण उपदेश - यीयूष पिलाना उनके ही बश की बात है। 'कहां परदेशी को पतियारो । मनमाने तब चले पन्थ को सांझ गिनें न सकारो । " " सबे कुटुम्ब छोड़ इतन की पुनि त्याग चले तन प्यारो । दूर देशावर चलत आपहि, कोऊ न रोकन हारो । कोऊ प्रीति करो किन कोटिक अंत होइगो न्यारौ ॥” इसी प्रकर कवि प्रभु चरण- सेवन का महत्व बताते हुए गाते हैं तेरो नाम कल्प वृक्ष इच्छा को न राखे उर, तेरो नाम कामधेनु कामना हरत है। तेरो नाम चिन्तामणी चिन्ता को न रखे पास, तेरो नाम पारस सो दारिद हरत है। 1. डा० प्रेमसागर जैन - हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ० 270.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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