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________________ 382 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य और जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों के साथ उनकी विद्वता, बहुश्रुतता तथा मानव-कल्याण की प्रवृत्तियों का सुंदर वर्णन किया गया है। आचार्यों व मुनियों के जीवन चरित्रों के अलावा जैन समाज को प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवन चरित्र भी प्रकट हुए हैं, इन 'जीवन चरित्रों में सेठ माणिक चंद्र, सेठ हुकुमचन्द, कुमार देवेन्द्र प्रसाद, श्री बाबू ज्योतिप्रसाद, ब्र० शीतलप्रसाद, ब्र पं० चन्द्राबाई, श्रीमगनबाई एवं श्वेतांबर के अनेक यति-मुनियों के जीवन चरित्र प्रधान हैं। इन चरित्रों में से कई एक तो अवश्य ही साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पाठक इन जीवन-चरित्रों से अनेक बातें ग्रहण कर सकते हैं।' आधुनिक युग में तीर्थंकरों की जीवनियाँ भी काफी मात्रा में उपलब्ध होती हैं आगम ग्रन्थों और पौराणिक आधारों पर से ये जीवनियाँ ग्रहण की गई होने से उनकी वास्तविकता में संदेह की मात्रा कम रहती है। ऐसी जीवनियों को हम कथा-साहित्य के अंतर्गत भी ग्रहण कर सकते हैं, लेकिन तीर्थंकरों की जीवनी का क्रमबद्ध विवरण व दार्शनिक सिद्धांतों की चर्चा बीच-बीच में आने से कथा-साहित्य के अन्तर्गत न लेकर जीवनी साहित्य के साथ ही लिखा जा सकता है। भगवान आदिनाथ, पार्श्वनाथ, अरिष्टनेमि, महावीर की जीवनियाँ विशेष उपलब्ध होती हैं। सभी में थोड़ी-बहुत समानता दृष्टिगत होती है, यथा-तीर्थंकर की जन्मभूमि की समृद्धि व भव्यता का वर्णन, वंश-परिचय, माता के गर्भ में आने पूर्व माता को स्वप्न, ज्योतिष से स्वप्न फल का रहस्य जानना, जन्म से पूर्व स्वप्न, जन्म महोत्सव, इन्द्रादि देवों द्वारा आनंद-उत्सव, कुमारावस्था, वैराग्य-भावना, दीक्षा महोत्सव, तपश्चर्या, कष्टों को (परिषदों) सहने के उपरांत 'केवल ज्ञान' प्राप्ति एवं उपदेश (देशना)। ऐसे चरित्रों की वस्तु में उपदेशात्मकता होने पर भी रोचकता एवं जिज्ञासा बनी रहती है। उसी प्रकार जैन धर्म की प्रमुख सतियों के जीवन चरित्रों में श्री मृगावती चरित, सती अंजना, धारिणी देवी, सुरसुंदरी चरित आदि प्रमुख हैं। वैसे सभी जीवनियों की शैली भी प्रायः समान रहती है, फिर भी भाषा की प्रौढ़ता, विचारों का गांभीर्य, शैली की जीवंतता, तथ्य प्रस्तुतीकरण के अन्तर के कारण भिन्न-भिन्न लेखकों की विशिष्टता व विद्वता दृष्टिगत होती है। वसंतकुमार जैन ने भगवान ऋषभदेव, भगवान शान्तिनाथ, भगवान पार्श्वनाथ एवं भगवान अरिष्टनेमि के चरित्र-ग्रन्थ सुंदर भाषा एवं अत्यन्त आकर्षक शैली युक्त है। अतः उनकी रचनाओं में रोचकता का निर्वाह पूर्णतः हो पाया है। इन जीवनियों के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रस्तावना में लिखते 1. डा. नेमिचन्द्र जी : हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, पृ० 141.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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