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________________ 340 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य भारतमाता का उद्धार करने की ठान कर निकल पड़ा। उधर दिन-ब-दिन जुए के चक्कर में फंसा हुआ सुमेरु सब कुछ हार गया और पत्नी के आभूषण तक मांगने लगा लेकिन पत्नी ने अपने गहने देने से इन्कार कर दिया। दूसरी कथा में एक ब्रह्मचारी और उनका मित्र नन्दलाल जापान आ रहे थे। मार्ग में एक विशाल मंडप में मादक कान्फ्रेन्स होते देख रुक गये, जहाँ सभी नशे में धुत्त थे। वे सभी इस प्रस्ताव को पास कर रहे थे कि देश में अधिक से अधिक भांग, तम्बाकू, सिगरेट आदि का प्रचार हो। ब्रह्मचारी नवयुवकों की ऐसी तबाही देख चिंतित एवं दु:खी हुए। उन्होंने अपने उपदेशात्मक संभाषण द्वारा उनको सीधी राह बताने की चेष्टा की। इसी समय एक सुंदर, सुशील कन्या का स्वयंवर रचा जा रहा था, जिसमें अनेक कुमारों के साथ महेन्द्र भी पहुँचा और वरमाला उसी के गले में पड़ती है। सुमित्रा एवं महेन्द्र का पाणिग्रहण हुआ। ब्रह्मचारी राज दरबार में भी पहुँचता है और वहाँ राजकुमार की चरित्र भ्रष्टता, मद्यपान और व्यभिचार के समस्त दूषण प्रकट किये, साथ ही सुमित्रा के साथ बलात्कार करने की चेष्टा का प्रमाण भी दिया। तीनों को दरबार में उन्होंने पेश किया। राजा ने राजकुमार को कैद की सजा दी और उन दोनों का सम्मान किया। राजा बाद में ब्रह्मचारी व सुमित्रा के आग्रह से राजकुमार को छोड़ दिया । महेन्द्र को प्रजा कल्याण तथा ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए नेता बनाया गया और इस समाज-कार्य में ब्रह्मचारी ने भी अपना पूरा सहयोग देने का वादा किया। ब्रह्मचारी और कोई नहीं, सुमित्रा का पिता ही था, यह भेद भी बाद में खुलता है। पिता-पुत्री का मिलन होता है और सब प्रजा कार्य करते हुए आनंद से रहते हैं। भाषा: इस नाटक की कथावस्तु में अनेक पात्र होने से भाषा भी भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यवहृत हुई है। 'कुणधणा' आदि मारवाडी एवं करे है, उडायुं हुई आदि गुजराती भाषा के शब्दों के साथ अंग्रेजी भाषा के शब्दों का खुलकर प्रयोग नाटककार ने किया है। कथा एवं भाषा विशृंखलित होने पर भी संवादों की रोचकता एवं संक्षिप्तता के कारण नाटक अभिनय योग्य हो सकता है। अंजना' : जैन साहित्य में अंजना सुन्दरी का कथानक इतना लोकप्रिय रहा है कि उसका आलम्बन लेकर उपन्यास, नाटक एवं कथा-साहित्य की रचना की गई है। सुदर्शन जी और कन्हैयालाल जी ने पृथक्-पृथक् रचना की है। सुदर्शन ने 1. प्रकाशक-जिनवाणी प्रचार कार्यालय-बंबई।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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