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________________ दो शब्द आज कितने सालों के बाद शोध-प्रबन्ध का छपवाने का स्वप्न पूरा हुआ है। पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण व परिवार में थोड़े महीनों में बारी-बारी से अचानक निधन-पति की भी अचानक दुःखद मृत्यु के कारण आर्थिक रूप से छपवाने का कार्य नहीं हो पाया था। ___मैं अपने गुरुजी निर्देशक डॉ. डी. एस. शुक्ल जी की हृदय से आभारी हूँ। उसी तरह अपने विभागाध्यक्ष व अन्य गुरुजनों के प्रति अपनी कृतज्ञता अभिव्यक्त करना फर्ज समझती हूँ। ए-वन, ग्राफिक के श्रीपुन भाई श्री रमनभाई चौधरी के प्रति मैं अपना आभार व्यक्त करना अत्यंत उचित समझती हूँ जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से ध्यान देकर कम समय में इतने बड़े शोध-प्रबंध को अच्छे सुचारु ढंग से छाप दिया। उनके साथ पारिवारिक सम्बन्ध सा हो गया। एक अच्छे-इन्सान के रूप में मैंने उनको पाया। साथ ही मैं श्री सी०पी० गौतम, प्रबन्धक भारतीय कला प्रकाशन, दिल्ली का विशेष रूप से धन्यवाद करती हूँ जिन्होंने पुस्तक को शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित किया। पुस्तक में जो भी कमियाँ रह गई हों उनके लिए आप सबसे मैं क्षमा चाहती हूँ। जो कुछ भी बन पड़ा यथाशक्ति-यथामति-आपके समक्ष विनम्र भाव से प्रस्तुत करती हूँ। विद्वाज्जनों-गुरुजनों की बड़ी कृपा रहेगी यदि इसे सभी गलतियों के साथ स्वीकार करेंगे तो-बाकी तो क्या? आप सब का अनुग्रह मेरा सौभाग्य है। -डॉ. सरोज के वोरा
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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