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________________ श्रमण-संस्कृति अभूतपूर्व थी। भिक्षुणियों ने निःसंदेह अपने-आप को बड़ी सफलतापूर्वक व्यवस्थित कर रखा था और शायद इस प्रस्ताव के बाद भी वे ऐसे ही कार्यरत रहीं, लेकिन अब औपचारिक तौर पर भिक्षुओं के नियंत्रण (तथा संरक्षण) में। ऐसे समझौते ने उन्हें बेचैन तो शायद अवश्य कर दिया होगा, लेकिन यह ऐसा समझौता था जिसके द्वारा भिक्षुओं को न केवल राहत मिली होगी बल्कि स्वतंत्र कल्प महिलाओं के असामान्य समूह को भी जितना संभव हो सकता था उतना उचित ठहराया गया होगा। लेकिन, इस कहानी में, विनय के सम्पादकों को कई और समस्याओं का समाधान भी करना पड़ा। कहानी में, महाप्रजापति गौतमी महिलाओं के नेतृत्व का कार्य करती है, जो बुद्ध के भिक्षुओं के नेतृत्व के समानान्तर चलती है। प्रारम्भ में, बुद्ध द्वारा उनकी मांग अस्वीकार कर दिये जाने के बावजूद महाप्रजापति गौतमी व उनकी शिष्याएं केश कटाये, काषाय वस्त्र पहने तथा बुद्ध के धर्म व संघ का अनुसरण करती हुई दिखाई गई हैं। बौद्ध धर्म ने महिलाओं को परिवार, विवाह और प्रसूति जैसी संस्थाओं से न केवल मुक्ति पाने का बल्कि उन्हें खुद को संयोजित करने का मौका भी दिया। . . संदर्भ 1. एलन, स्पानबर्ग, एटीट्यूड टुवर्डस वीमेन एण्ड फैमिली इन अर्ली बुद्धिज्म, न्यूयार्क, 1992, पृष्ठ 3-36 2. शर्मा, चन्द्रधर, ए क्रिटिकल सर्वे ऑफ इण्डियन फिलॉसफी, मोतीलाल बनारसी दास, 1983, पृष्ठ 70 3. गौड़ रंजना, त्रिपिटक साहित्य में प्रतिबिम्बित समाज, लखनऊ, 2002, पृष्ठ 86-100 4. एलन, स्पानबर्ग, वही 5. वही 6. अल्तेकर, ए० एस०, द पोजीशन ऑफ वीमेन इन हिन्दू सिविलीजेशन, दिल्ली, 1974, पृष्ठ 54-55 7. हार्नर, आई० वी०; वीमेन अण्डर प्रिमिटिव बुद्धिज्म, मोतीलाल बनारसीदास, 1975, पृष्ठ 193 8. यंग, कैथरिन, वीमेन इन वर्ल्ड रिलीजिअस, न्यूयार्क, 1987, पृष्ठ 16 9. ग्रॉस, रीटा एम०, फेमिनिज्म एण्ड रिलीजन : ऐन इण्ट्रोडक्शन, बोस्टन, 1996, पृष्ठ 139
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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