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________________ 402 श्रमण-संस्कृति निर्दिष्ट किये गये हैं। जैन धर्म में प्रतिपादित अहिंसा सिद्धान्त के प्रभाव से वैश्यों ने सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए कृषिकर्म तथा पशु-पालन छोड़ दिया था और व्यापार को अपनी आजीविका का साधन बना लिया था। जैन धर्म में वैश्य वृत्ति के अन्तर्गत कृषिकर्म की आलोचना की गयी है। जैनी अहिंसक थे उनकी धारणा थी कि कृषिकर्म करने से बड़ी मात्रा में हिंसा होती है। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि 'जो दुष्ट बैलों को जोतता है, वह उन्हें मारता हुआ क्लेश पाता है, तथा असमाधि का अनुभव करता है। इस समय वैश्यों की सामाजिक स्थिति बदल गयी थी। अनेक वैश्यों ने राज परिवार और भिक्षु संघों को अतुल धनराशि देकर अपनी जाति की गरिमा को उठा लिया था अब वे ब्राह्मण, क्षत्रिय राजकुमारों के साथ शिक्षा भी ग्रहण करते थे और राज्य सभा में उच्च पद पर आसीन होते थे। जैन धर्म ने सभी वर्गों के सदस्यों को संघ में प्रवेश की अनुमति दी और निम्नवर्गों के उत्थान का प्रयास भी किया। जैन साहित्य में कहा गया है कि चाण्डाल भी ज्ञानादि उत्तम गुणों के धारक और जितेन्द्रिय होकर भिक्षु हो सकते हैं। पद्यपुराण में वर्णित है कि कोई भी जाति निन्दनीय नहीं है। वस्तुतः चाण्डाल भी व्रत में रत हैं, तो वह भी ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी होता है।' जैन पुराणों में ब्राह्मणों की उत्पत्ति के विषय में उल्लेखित है कि चक्रवर्ती भरत ने एक बार अपने यहाँ दानादि के लिए श्रावकों को आमंत्रित किया। राजभवन के आंगन में हरी-हरी घास उगी थी। जीव हत्या के भय से जो व्रती श्रावक भरत के पास नहीं गये और बाहर खड़े रहे उन्हें उन्होंने ब्राह्मण घोषित किया। जैन ग्रन्थों में सामान्यतः ब्राह्मण के लिए द्विज और ब्राह्मण शब्द का प्रयोग किया है किन्तु प्रसंगतः इनमें विप्त, भूदेव, श्रोतिए, पुरोहित, देवभोगी, मौहूर्तिक, वाडव, उपाध्याय तथा त्रिवेदी जैसे शब्द भी प्राप्त होते हैं।' महापुराण के अनुसार वह व्यक्ति द्विजन्मा (द्विज) है। जिसका जन्म एक बार माता के गर्भ से और दूसरी बार उसकी क्रिया (पारस्परिक ग्रन्थों में वर्णित संस्कार) से होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जिसमें क्रिया और मंत्र दोनों का अभाव है, वह मात्र नाम धारक द्विज है। जैन सूत्रों में सामान्यता ब्राह्मणों के प्रति
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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