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________________ बौद्ध वाङ्मय में महिला विमर्श बौद्ध रीति-रिवाज से किसी भी रूप से अलग रखा जा सकता था, और न ही अन्तिम लक्ष्य, अर्थात् निर्वाण प्राप्त करने से रोका जा सकता था । सामाजिक रूप से उग्र होते हुए भी, यह स्थिति बुद्धवचन के मूल दार्शनिक सिद्धान्तों के बिल्कुल अनुकूल थी । यह इस मायने में एक क्रांतिकारी सफलता थी कि महिलाएं मुक्ति की बौद्ध खोज में स्पष्ट रूप से शामिल थीं। दूसरे शब्दों में, बुद्ध व आनन्द जैसे उनके कुछ सहयोगियों का यह स्पष्ट मानना था कि जाति की तरह लिंग भी किसी व्यक्ति द्वारा दुःख से छुटकारा पाने के बौद्ध लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधा नहीं हो सकता था। लेकिन, भिक्षुणी संघ की स्थापना का शायद एक नकारात्मक परिणाम भी रहा होगा । 11 अल्तेकर के अनुसार, जैन व बौद्ध धर्मों में भिक्षुणियों के लिए विहारों की स्थापना, माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध दीक्षा लेने वाली कई कुंआरी लड़कियों में से कुछ का बाद में उच्च आध्यात्मिक आदर्श से गिर जाने की घटनाओं से इस बात को बल मिला होगा कि लड़कियों का विवाह यथाशीघ्र विशेषकर किशोरावस्था से पहले ही कर दिया जाना चाहिये। इसलिए निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि भिक्षुणी संघ की स्थापना के बाद, लड़कियों का विवाह करने योग्य आयु में लगातार कमी की जा रही थी । आधुनिक थेरवादी देशों भिक्षुणी - संघ का प्रायः न होना भी महिलाओं के खिलाफ दक्षिण एशियाई समाज के इस स्वाभाविक पक्षपात को प्रदर्शित करता है। लेकिन जैसा कि हॉर्नर ने कहा है, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि बुद्ध ने 'उनमें पुरुषों की तरह ही अच्छाई व आध्यात्मिकता की अन्तःशक्ति को देखा।" बौद्ध धर्म ने महिलाओं को अधिक अच्छे अवसर प्रदान किये। भिक्षुणी संघ के माध्यम से, महिलाओं के पास अपनी पारिवारिक भूमिकाओं के स्थान पर एक विकल्प भी उपलब्ध निहित थे। लेकिन संघ में उनके सहयोगी, खासकर उनकी मृत्यु के बाद, लोक प्रचलित और प्रायः नारी-द्वेषी विद्यमान संस्कृति से उपजते गैर-बौद्धीय विश्वासों पर भरोसा करते थे जो यह मानते थे कि एक महिला को हमेशा अपनी रिश्तेदारी के किसी पुरुष-पिता, पति या पुत्र के नियंत्रण में रहना चाहिये । परम्परागत बौद्ध चिन्तन ने भले ही यह स्वीकार किया हो कि भारतीय उभयकेन्द्रित- पितृसत्ता महिलाओं के लिए प्रतिकूल थी,
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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