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________________ श्रमण-संस्कृति था, सुभद्रा अपने व्याख्यानों और उपदेशों में अमृत की वर्षा करती थीं। विदुषी जयन्ती ने तो स्वयं वर्धमान महावीर से वाद-विवाद किया था। कुछ भिक्षुणियों का अपना व्यक्तिगत शिष्य-समुदाय था जो न केवल धर्म प्रस्तुत करने में समर्थ थीं, बल्कि वे बुद्ध या कुछ दूसरे वरिष्ठ भिक्षुओं की मध्यस्थता के बिना भी नये महत्वाकांक्षियों को सम्पूर्ण मुक्ति तक पहुंचा सकती थीं। यद्यपि त्रिपिटक में बहुत-सी महिलाओंको दूसरी महिलाओं की शिक्षिकाओं के रूप में प्रस्तुत किया गया है, तथापि इन ग्रन्थों में प्रति संकुचित मानसिकता रखने वाले सम्पादकों ने धम्मदिना जैसी महिलाओं के कुछ वृत्तान्त बचाकर रख लिये, जिसे भिक्षुणी बनने के बाद अपने पूर्व-पति विसाख को निर्देश देने का मौका मिला। जैसा कि चुलवेदल्लसुत्त में बताया गया है, धम्मदिन्ना, विसाख द्वारा सिद्धान्त व व्वयहार के पहलुओं से सम्बन्धित पूछे गये प्रश्नों की एक लम्बी श्रृंखला का उत्तर देती हैं। विसाख एक प्रसिद्ध व्यापारी व अयाजकीय बौद्ध शिक्षक था और जैसा कि अट्टकथाएं बताती हैं, उसका अपना एक महत्वपूर्ण शिष्य-समुदाय था। विसाख, बाद में, धम्मदिन्ना के उत्तरों से बुद्ध को अवगत कराता है और बुद्ध बड़े खुश होकर कहते हैं कि वे भी बिल्कुल धम्मदिन्ना की तरह ही उत्तर देते। इस सुझाव का पर्याप्त प्रमाण है कि महिलाएं न केवल आरम्भिक बौद्ध समुदाय में स्पष्ट रूप से उपस्थित थीं, बल्कि साधिकाओं व शिक्षिकाओं दोनों ही रूपों में प्रमुख व सम्माननीय जगह भी बनाए हुए थीं। बुद्धोत्तर काल में महिलाएं संरक्षिकाओं व दानकर्तृयों के रूप में दृष्टिगोचर तो होती हैं, लेकिन भिक्षुणी-संघ को वह प्रतिष्ठा या सर्जनात्मकता मिलती प्रतीत नहीं होती है, जैसी की खेमा, धम्मदिन व आरम्भिक अर्हत् भिक्षुणियों की उत्तराधिकारिणियों को मिलने की आशा की जा सकती थी। प्रारम्भिक बौद्ध धर्म में न केवल महिलाओं के लिए धर्मपथ खुला था; बल्कि, वास्तव, में यह रास्ता महिलाओं व पुरुषों दोनों के लिए एक ही प्रकार का था। ऐसी बात नहीं कि लिंग-भेद विद्यमान नहीं थे, लेकिन वे 'मुक्ति प्राप्त करने की दृष्टि से नगण्य' थे जो अधिक से अधिक मुक्ति के वास्तविक लक्ष्य में विपथक हो सकते थे। परम्परागत रूप से जो भी सीमाएं महिलाओं पर थोपी गई हैं, उन्हें न तो
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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