SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध धर्म का वैश्विकरण 9 शूद्रों दोनो का हीन माना जाता था और बौद्ध धर्म में उन्हें धर्म ग्रहण कराके उन्हें इस अधिकार हीनता से मुक्ति दिलाया। __ प्राचीन बौद्धग्रंथ सुत्त-निपात में गाय को भोजन रूप और सुख देने वाली (अन्नदा वन्नदा सुखदा) कहा गया है इसलिए बौद्ध धर्म में उसकी रक्षा करने का उपदेश दिया है क्योंकि इस समय आर्योत्तर काल में बड़े-बड़े उत्सवो पर गायों का मांस खाया जाता था और पशुओं का संहार हो रहा था ब्राह्मण धर्म में गाय की पूजा और अहिंसा पर बल देता है वह बौद्ध धर्म के उपदेशो का ही प्रमुख था इतना तक ही नहीं बौद्ध धर्म ने वैदिक साहित्य जगत में भी जागृति लाई बौद्ध साहित्य में पहली बार अधाविश्वास की जगह तक को स्थान दिया। ___ अतः यह कहा जा सकता है कि इस वैश्विक युग के जब पूरा विश्व एक गौरव में परिवतीत हो गया है जहाँ अपसी स्वार्थ, महात्वांकाक्षा, हिंसा इतनी बढ़ गयी है कि नैतिकता, मानावता, करुणा, सहनशीलता, सहयोग, परोपकार जैसे मानवीय गुण (मूल्य) हाशिए पर खड़े हो तो उस समय बौद्ध धर्म की प्रांसागिकता स्वयं बढ़ जाती है क्योंकि बौद्ध चर्मण दर्शन ही समानता, अहिंसा, नैतिकता, भाईचारा, सदाचारिता, आचरणशीलता, समाजिक समरक्षता, जैसे मानवीय मूल्य हैं। __ सन्दर्भ डॉ० वाकेविहारी मणि त्रिपाठी, प्रचीन भारतीय धर्म। डॉ. गोविन्द चन्द्र पाण्डेय, बौद्ध धर्म का विकास का इतिहास। डॉ० ए०एन० बाशम, अदभुत भारत। डॉ० आर० एन० पाण्डेय, प्राचीन भारत का राजनितिक एक सास्कृतिक इतिहास। डॉ० जय शंकर प्रसाद, प्रचीन भारत का सामाजिक इतिहास (NCERT- प्राचीन भारत)।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy