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________________ 63 शुंग-सातवाहन काल में श्रमण परम्परा का सातत्य स्तुति श्रीवास्तव ध्यात्व्य है कि शंग सम्राट ब्राह्मण परम्परा के पोषक थे तथापि उन्होंने बौद्ध तथा जैन धर्म के साथ उदारता की नीति अपनायी। मौर्यों के शासन काल में बौद्ध धर्म का प्रचार विदेशों में हुआ। यद्यपि शुंग काल में वैदिक आदर्शों एवं यज्ञ विहित मान्यताओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया, तथापि वैदिक युग का जीवन एवं संस्कृति अपने पहले रूप में कभी वापस नहीं आ सकते थे और न ही बौद्ध एवं जैन विचार जड़ से मिट सकते थे। पुनरूद्धार युग के पौराणिक, बौद्ध तथा जैन सभी मार्गों में एक नयी प्रेरणा और नये आदर्श दिखलायी देते हैं। उस नयी प्ररेणा में पुराने वैदिक और बौद्ध आदर्शों की परम्परा प्राप्त होती है। शुंग काल में यदि एक ओर शास्त्रों द्वारा दिग्विजय कर बड़े राज्य स्थापित करने के आदर्श का पुनरूद्धार हुआ तो दूसरी ओर अशोक के धम्म विजय की नीति अर्थात् शान्ति द्वारा एकता स्थापित करने की प्ररेणा भी अपना काम कर रही थी। प्रसिद्ध भरहुत स्तूप का तोरण शंगों के राज्यकाल में ही बना था। बौद्ध धर्म में इस समय अनेक प्रकार की पूजा प्रचलित थी। बुद्ध की पूजा, चैत्यगृह, धर्मचक्र, शरीर अवशेष की पूजा इत्यादि। भरहुत स्तूप पर अनेक प्रकार के वृक्षों का अंकन पाया जाता है। किन्तु उनमें प्रायः वे ही वृक्षदर्शित किये गये हैं, जिनका संबंध ध्यानी बुद्धों से था। साँची तथा अमरावती में भी चैत्यवृक्षों की पूजा के प्रभाव उपलब्ध होते है। भरहुत में भी शरीर अवशेष की पूजा अंकित दिखायी देती है। धर्मचक्र
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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